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254 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


झुनिया को अब यह शंका होने लगी कि वह रखेली है, इसी से उसका यह अपमान हो रहा है। ब्याहता होती, तो गोबर की मजाल थी कि उसके साथ यह बर्ताव करता। बिरादरी उसे दंड देती, हुक्का-पानी बंद कर देती। उसने कितनी बड़ी भूल की कि इस कपटी के साथ घर से निकल भागी। सारी दुनिया में हंसी भी हुई और हाथ कुछ न आया। वह गोबर को अपना दुश्मन समझने लगी। न उसके खाने-पीने की परवा करती, न अपने खाने-पीने की। जब गोबर उसे मारता, तो उसे ऐसा क्रोध आता कि गोबर का गला छुरे से रेत डाले। गर्भ ज्यों-ज्यों पूरा होता जाता है, उसकी चिंता बढ़ती जाती है। इस घर में तो उसको मरन हो जायगी। कौन उसकी देखभाल करेगा,कौन उसे संभालेगा? और जो गोबर इसी तरह मारता-पीटता रहा, तब तो उसका जीवन नरक ही हो जायगा।

एक दिन वह बंबे पर पानी भरने गई, तो पड़ोस को एक स्त्री ने पूछा-कै महीने है रे?

झुनिया ने लजाकर कहा-क्या जाने दीदी, मैंने तो गिना-गिनाया नहीं है।

दोहरी देह की,काली-कलूटी, नाटी, कुरूपा, बड़े-बडे़ स्तनों वाली स्त्री थी। उसका पति एक्का हांकता था और वह खुद लकड़ी की दुकान करती थी। झुनिया कई बार उसकी दुकान से लकड़ी लाई थी। इतना ही परिचय था।

मुस्कराकर बोली- मुझे तो जान पड़ता है, दिन पूरे हो गए हैं। आज ही कल में होगा। कोई दाई-बाई ठीक कर ली है?

झुनिया ने भयातुर स्वर में कहा-मैं तो यहां किसी को नहीं जानती।

'तेरा मर्दुआ कैसा है, जो कान में तेल डाले बैठा है?'

'उन्हें मेरी क्या फिकर!'

'हां, देख तो रही हूं। तुम तो सौर में बैठोगी, कोई करने-धरने वाला चाहिए कि नहीं? सास-ननद, देवरानी-जेठानी, कोई है कि नहीं? किसी को बुला लेना था।'

'मेरे लिए सब मर गए।'

वह पानी लाकर जूठे बरतन मांजने लगी, तो प्रसव की शंका से हृदय में धड़कनें हो रही थीं। सोचने लगी-कैसे क्या होगा भगवान्? उंह यही तो होगा, मर जाऊंगी, अच्छा है, जंजाल से छूट जाऊंगी।

शाम को उसके पेट में दर्द होने लगा। समझ गई विपत्ति की घड़ी आ पहुंची। पेट को एक हाथ से पकड़े हुए पसीने से तर उसने चूल्हा जलाया, खिचड़ी डाली और दर्द से व्याकुल होकर वहीं जमीन पर लेट रही। कोई दस बजे रात को गोबर आया, ताड़ी की दुर्गध उड़ाता हुआ। लटपटाती हुई जबान से ऊटपटांग बक रहा था। मुझे किसी की परवा नहीं है। जिसे सौ दफे गरज हो, रहे, नहीं चला जाय। मैं किसी का ताव नहीं सह सकता। अपने मां-बाप का ताव नहीं सहा, जिनने जनम दिया। तब दूसरों का ताव क्यों सहूं? जमादार आंखें दिखाता है। यहां किसी की धौंस सहने वाले नहीं हैं। लोगों ने पकड़ न लिया होता, तो खून पी जाता, खून। कल देखूंगा बचा को। फांसी ही तो होगी। दिखा देंगा कि मर्द कैसे मरते हैं। हंसता हुआ, अकड़ता हुआ, मूंछों पर ताव देता हुआ फांसी के तख्ते पर जाऊं, तो सही। औरत की जात। कितनी बेवफा होती है। खिचड़ी डाल दी और टांग पसारकर सो रही। कोई खाय या न खाय, उसकी बला से। आप मजे से फुलके उड़ाती है, मेरे लिए खिचड़ी। अच्छा सता ले जितना सताते बने, तुझे भगवान

सताएंगे। जो न्याय करते हैं।