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गोदान : 255
 


उसने झुनिया को जगाया नहीं। कुछ बोला भी नहीं। चुपके से खिचड़ी थाली में निकाली और दो-चार कौर निगलकर बरामदे में लेट रहा। पिछले पहर उसे सर्दी लगी। कोठरी से कंबल लेने गया तो झुनिया के कराहने की आवाज सुनी। नशा उतर चुका था। पूछा-कैसा जी है झुनिया। कहीं दरद है क्या।

'हां, पेट में जोर से दरद हो रहा है?'

'तूने पहले क्यों नहीं कहा? अब इस बखत कहां जाऊं?'

'किससे कहती?'

'मैं मर गया था क्या?'

'तुम्हें मेरे मरने-जीने की क्या चिंता?'

गोबर घबराया, कहां दाई खोजने जाय? इस वक्त वह आने ही क्यों लगी? घर कुछ है भी तो नहीं। चुड़ैल ने पहले बता दिया होता तो किसी से दो-चार रुपये मांग लाता। इन्हीं हाथों में सौ-पचास रुपये हरदम पड़े रहते थे, चार आदमी खुसामद करते थे। इस कुलच्छनी के आते ही जैसे लच्छमी रूठ गई। टके-टके को मुहताज हो गया।

सहसा किसी ने पुकारा-यह क्या तुम्हारी घरवाली कराह रही है? दरद तो नहीं हो रहा है?

यह वही मोटी औरत थी, जिससे आज झुनिया की बातचीत हुई थी। घोड़े को दाना खिलाने उठी थी। झुनिया का कराहना सुनकर पूछने आ गई थी।

गोबर ने बरामदे में जाकर कहा-पेट में दरद है। छटपटा रही है। यहां कोई दाई मिलेगी?

'वह तो मैं आज उसे देखकर ही समझ गई थी। दाई कच्ची सराय में रहती है। लपककर बुला लाओ। कहना, जल्दी चल। तब तक मैं यहीं बैठी हूं।'

'मैंने तो कच्ची सराय नहीं देखी, किधर है?'

'अच्छा, तुम उसे पंखा झलते रहो, में बुलाए लाती हूं। यही कहते हैं, अनाड़ी आदमी किसी काम का नहीं। पूरा पेट और दाई की खबर नहीं।'

यह कहती हुई वह चल दी। इसके मुंह पर तो लोग इसे चुहिया कहते हैं, यही इसका नाम था, लेकिन पीठ पीछे मोटल्ली कहा करते थे। किसी को मोटल्ली कहते सुन लेती थी, तो उसके सात पुरखों तक चढ़ जाती थी।

गोबर को बैठे दस मिनट भी न हुए होंगे कि वह लौट आई और बोली-अब संसार में गरीबों का कैसे निबाह होगा। रांड़ कहती है, पांच रुपये लूंगी-तब चलूंगी। और आठ आने रोज। बारहवें दिन एक साड़ी। मैंने कहा, तेरा मुंह झुलस दूं। तू जा चूल्हे में देख लूंगी। बारह बच्चों की मां यों ही नहीं हो गई हूं। तुम बाहर आ जाओ गोबरधन, मैं सब कर लूंगी। बखत पड़ने पर आदमी ही आदमी के काम आता है। चार बच्चे जना लिए तो दाई बन बैठी।

वह झुनिया के पास जा बैठी और उसका सिर अपनी जांघ पर रखकर उसका पेट सहलाती हुई बोली-मैं तो आज तुझे देखते ही समझ गई थी। सच पूछो, तो इसी धड़के में आज मुझे नींद नहीं आई। यहां तेरा कौन सगा बैठा है?

झुनिया ने दर्द से दांत जमाकर 'सी' करते हुए के हा-अब न बचूंगी। दीदी। हाय मैं तो भगवान से मांगने न गई थी। एक को पाला-पोसा। उसे तुमने छीन लिया, तो फिर इसका कौन काम था? मैं मर जाऊं माता, तो तुम बच्चे पर दया करना। उसे पाल-पोस देना। भगवान् तुम्हारा

भला करेंगे।