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गोदान : 289
 


राय साहब को लड़के की जड़ता पर फिर क्रोध आ गया। गरजकर बोले-मालूम होता है, तुम्हारा सिर फिर गया है। आकर मुझसे मिलो। विलंव न करना। मैं राजा साहब को जबान दे चुका हूं।

रुद्रपाल ने जवाब दिया-खेद है, अभी मुझे अवकाश नहीं है।

दूसरे दिन रायसाहब खुद आ गए। दोनों अपने-अपने शस्त्रों से सजे हुए तैयार खड़े थे। एक ओर सम्पूर्ण जीवन का मंजा हुआ अनुभव था, समझौतों से भरा हुआ, दूसरी ओर कच्चा आदर्शवाद था, जिद्दी, उद्दंड और निर्मम।

रायसाहब ने सीधे मर्म पर आघात किया-मैं जानना चाहता हूं, वह कौन लड़की है?

रुद्रपाल ने अचल भाव से कहा-अगर आप इतने उत्सुक हैं, तो सुनिए। वह मालती देवी की बहन सरोज है।

रायसाहब आहत होकर गिर पड़े-अच्छा वह!

'आपने तो सरोज को देखा होगा?'

'खूब देखा है। तुमने राजकुमारी को देखा है या नहीं?'

'जी हाँ, खूब देखा है।'

'फिर भी....'

'मैं रूप को कोई चीज नहीं समझता।'

'तुम्हारी अक्ल पर मुझे अफसोस आता है। मालती को जानते हो, कैसी औरत है? उसकी बहन क्या कुछ और होगी।'

रुद्रपाल ने तेवरी चढ़ाकर कहा-मैं इस विषय में आपसे और कुछ नहीं कहना चाहता, मगर मेरी शादी होगी, तो सरोज से।'

'मेरे जीते जी कभी नहीं हो सकती।'

'तो आपके बाद होगी।'

'अच्छा, तुम्हारे यह इरादे हैं!'

और रायसाहब की आंखें सजल हो गईं। जैसे सारा जीवन उजड़ गया हो। मिनिस्टरी और इलाका और पदवी, सब जैसे बासी फूलों की तरह नीरस, निरानन्द हो गए हों। जीवन की सारी साधना व्यर्थ हो गई। उनकी स्त्री का जब देहांत हुआ था, तो उनकी उम्र छत्तीस साल से ज्यादा न थी। वह विवाह कर सकते थे, और भोगविलास का आनंद उठा सकते थे। सभी उनसे विवाह करने के लिए आग्रह कर रहे थे, मगर उन्होंने इन बालकों का मुंह देखा और विधुर जीवन की साधना स्वीकार कर ली। इन्हीं लड़कों पर अपने जीवन का सारा भोग-विलास न्योछावर कर दिया। आज तक अपने हृदय का सारा स्नेह इन्हीं लड़कों को देते चले आए हैं, और आज यह लड़का इतनी निष्ठुरता से बातें कर रहा है, मानो उनसे कोई नाता नहीं, फिर वह क्यों जायदाद और सम्मान और अधिकार के लिए जान दें। इन्हीं लड़कों ही के लिए तो वह सब कुछ कर रहे थे, जब लड़कों को उनका जरा भी लिहाज नहीं, तो वह क्यों यह तपस्या करें। उन्हें कौन संसार में बहुत दिन रहना है। उन्हें भी आराम से पड़े रहना आता है। उनके और हजारों भाई मूंछों पर ताव देकर जीवन का भोग करते हैं और मस्त घूमते हैं। फिर वह भी क्यों न भोग-विलास में पड़े रहें। उन्हें इस वक्त याद न रहा कि वह जो तपस्या कर रहे हैं, वह लड़कों के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए, केवल यश के लिए