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गोदान : 291
 


रायसाहब भांप न सके। उछलकर बोले-जी हाँ, केवल प्रतिष्ठा का। राजा सूर्यप्रतापसिंह को तो आप जानते हैं?

'मैंने उनकी लड़की को भी देखा है। सरोज उसके पांव की धूल भी नहीं है।'

'मगर इस लौंडे की अक्ल पर पत्थर पड़ गया है।'

'तो मारिए गोली, आपको क्या करना है। वही पछताएगा।'

'ओह! यही तो नहीं देखा जाता मेहताजी? मिलती हुई प्रतिष्ठा नहीं छोड़ी जाती। मैं इस प्रतिष्ठा पर अपनी आधी रियासत कुर्बान करने को तैयार हूं। आप मालती देवी को समझा दें, तो काम बन जाय। इधर से इंकार हो जाय, तो रुद्रपाल सिर पीटकर रह जायगा और यह नशा दस-पांच दिन में आप उतर जायगा। यह प्रेम-व्रेम कुछ नहीं, केवल सनक है।'

'लेकिन मालती बिना कुछ रिश्वत लिए मानेगी नहीं।'

'आप जो कुछ कहिए, मैं उसे दूंगा। वह चाहे तो मैं उसे यहां के डफरिन हास्पिटल का इंचार्ज बना दूं।'

'मान लीजिए, वह आपको चाहे तो आप राजी होंगे। जब से आपको मिनिस्टरी मिली है, आपके विषय में उसकी राय जरूर बदल गई होगी।'

रायसाहब ने मेहता के चेहरे की तरफ देखा। उस पर मुस्कराहट की रेखा नजर आई। समझ गए। व्यथित स्वर में बोले-आपको भी मुझसे मजाक करने का यही अवसर मिला। मैं आपके पास इसलिए आया था कि मुझे यकीन था कि आप मेरी हालत पर विचार करेंगे, मुझे उचित राय देंगे। और आप मुझे बनाने लगे। जिसके दांत नहीं दुखे, वह दांतों का दर्द क्या जाने।

मेहता ने गम्भीर स्वर से कहा-क्षमा कीजिएगा, आप ऐसा प्रश्न ही लेकर आए हैं कि उस पर गम्भीर विचार करना मैं हास्यास्पद समझता हूं। आप अपनी शादी के जिम्मेदार हो सकते हैं। लड़के की शादी का दायित्व आप क्यों अपने ऊपर लेते हैं, खास कर जब आपका लड़का बालिग है और अपना नफा-नुकसान समझता है। कम-से-कम मैं तो शादी-जैसे महत्व के मुआमले में प्रतिष्ठा का कोई स्थान नहीं समझता। प्रतिष्ठा धन से होती तो राजा साहब उस नंगे बाबा के सामने घंटों गुलामों की तरह हाथ बांधे न खड़े रहते। मालूम नहीं कहां तक सही है, पर राजा साहब अपने इलाके के दारोगा तक को सलाम करते हैं, इसे आप प्रतिष्ठा कहते हैं? लखनऊ में आप किसी दूकानदार, किसी अहलकार, किसी राहगीर से पूछिए, उनका नाम सुनकर गालियां ही देगा। इसी को आप प्रतिष्ठा कहते हैं? जाकर आराम से बैठिए। सरोज से अच्छी वधू आपको बड़ी मुश्किल से मिलेगी।

रायसाहब ने आपत्ति के भाव से कहा-बहन तो मालती ही की है।

मेहता ने गर्म होकर कहा-मालती की बहन होना क्या अपमान की बात है? मालती को आपने जाना नहीं, और न जानने की परवाह की। मैंने भी यही समझा था, लेकिन अब मालूम हुआ कि वह आग में पड़कर चमकने वाली सच्ची धातु है। वह उन वीरों में है जो अवसर पड़ने पर अपने जौहर दिखाते हैं, तलवार घुमाते नहीं चलते। आपको मालूम है खन्ना की आजकल क्या दशा है?

रायसाहब ने सहानुभूति के भाव से सिर हिलाकर कहा-सुन चुका हूं, और बार-बार इच्छा हुई कि उनसे मिलूं, लेकिन फुरसत न मिली। उस मिल में आग लगना उनके सर्वनाश का कारण हो गया।