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30 : प्रेमचंद रचनावली-6
 

होरी ने लोभ को रोककर कहा -- मंगवा लूंगा, जल्दी क्या है?
'तुम्हें जल्दी न हो, हमें तो जल्दी है। उसे द्वार पर देखकर तुम्हें वह बात याद रहेगी।'
'उसकी मुझे बड़ी फिकर है दादा।'
'तो कल गोबर को भेज देना।'
दोनों ने अपने-अपने खांचे सिर पर रखे और आगे बढ़े। दोनों इतने प्रसन्न थे मानो ब्याह करके लौटे हों। होरी को तो अपनी चिर संचित अभिलाषा के पूरे होने का हर्ष था, और बिना पैसे के। गोबर को इससे भी बहुमूल्य वस्तु मिल गयी थी। उसके मन में अभिलाषा जाग उठी थी।
अवसर पाकर उसने पीछे की तरफ देखा। झुनिया द्वार पर खड़ी थी, मन आशा की भाँति अधीर, चंचल।


चार

होरी को रात भर नींद नहीं आयी। नीम के पेड़-तले अपनी बांस की खाट पर पड़ा बार-बार तारों की ओर देखता था। गाय के लिए एक नांद गाड़नी है। बैलों से अलग उसकी नांद रहे तो अच्छा। अभी तो रात को बाहर ही रहेगी; लेकिन चौमासे में उसके लिए कोई दूसरी जगह ठीक करनी होगी। बाहर लोग नजर लगा देते हैं। कभी-कभी तो ऐसा टोना-टोटका कर देते हैं कि गाय का दूध ही सूख जाता है। थन में हाथ ही नहीं लगाने देती। लात मारती है। नहीं, बाहर बांधना ठीक नहीं। और बाहर नांद भी कौन गाड़ने देगा। कारिन्दा साहब नजर के लिए मुंह फैलाएंगे। छोटी छोटी बात के लिए रायसाहब के पास फरियाद ले जाना भी उचित नहीं। और कारिंदे के सामने मेरी सुनता कौन है। उनसे कुछ कहूं, तो कारिंदा दुश्मन हो जाय। जल में रहकर मगर से बैर करना बुड़बकपन है। भीतर ही बांधूंगा। आंगन है तो छोटा-सा, लेकिन एक मड़ैया डाल देने से काम चल जायगा। अभी पहला ही ब्यान है। पाँच सेर से कम क्या दूध देगी। सेर-भर तो गोबर ही को चाहिए। रुपिया दूध देखकर कैसी ललचाती रहती है। अब पिए जितना चाहे। कभी-कभी दो-चार सेर मालिकों को दे आया करूंगा। कारिंदा साहब की पूजा भी करनी ही होगी। और भोला के रुपए भी दे देना चाहिए। सगाई के ढकोसले में उसे क्यों डालूँ। जो आदमी अपने ऊपर इतना विश्वास करे, उससे दगा करना नीचता है। अस्सी रुपए की गाय मेरे विश्वास पर दे दी। नहीं यहां तो कोई एक पैसे को नहीं पतियाता। सन में क्या कुछ न मिलेगा? अगर पच्चीस रुपए भी दे दूं, तो भोला को ढाढ़स हो जाय। धनिया से नाहक बता दिया। चुपके से गाय लेकर बांध देता तो चकरा जाती। लगती पूछने, किसकी गाय है? कहां से लाए हो?। खूब दिक करके तब बताता; लेकिन जब पेट में बात पचे भी। कभी दो-चार पैसे ऊपर से आ जाते हैं; उनको भी तो नहीं छिपा सकता। और यह अच्छा भी है। उसे घर की चिन्ता रहती है; अगर उसे मालूम हो जाय कि इनके पास भी पैसे रहते हैं, तो फिर नखरे बघारने लगे। गोबर जरा आलसी है, नहीं मैं गऊ की ऐसी सेवा करता कि जैसी चाहिए। आलसी-वालसी कुछ नहीं है। इस उमिर में कौन आलसी नहीं होता?