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32 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


में तुल जाती है। खाने-भर को भी नहीं बचता। ब्याह कहां से हो? और अब तो सोना ब्याहने योग्य हो गई। लड़के का ब्याह न हुआ न सही। लड़की का ब्याह न हुआ, तो सारी बिरादरी में हंसी होगी। पहले तो उसी की सगाई करनी है, पीछे देखी जायगी ।
एक आदमी ने आकर रामराम किया और पूछा- तुम्हारी कोठी में कुछ बांस होंगे महतो?
होरी ने देखा, दमड़ी बंसोर सामने खड़ा है, नाटा, काला, खूब मोटा, चौड़ा मुंह, बड़ी-बड़ी मूंछें,लाल आंखें, कमर में बांस काटने की कटार खोंसे हुए साल में एक-दो बार आकर चिकें, कुर्सियां, मोढे, टोकरियां आदि बनाने के लिए कुछ बांस काट ले जाता था।
होरी प्रसन्न हो गया। मुट्ठी गर्म होने की कुछ आशा बंधी। चौधरी को ले जाकर अपनी तीनों कोठियां दिखाई, मोल-भाव किया और पच्चीस रुपये सैकड़े पचास बांसों का बयाना ले लिया। फिर दोनों लौटे। होरी ने उसे चिलम पिलाई, जलपान कराया और तब रहस्यमय भाव से बोला-मेरे बांस कभी तीस रुपये से कम में नहीं जाते, लेकिन तुम घर के आदमी हो, तुमसे क्या मोल-भाव करता। तुम्हारा वह लड़का, जिसकी सगाई हुई थी, अभी परदेस से लौटा कि नहीं?
चौधरी ने चिलम का दम लगाकर खांसते हुए कहा-उस लौंडे के पीछे तो मर मिटा महतो। जवान बहू घर में बैठी थी और वह बिरादरी की एक दूसरी औरत के साथ परदेस में मौज करने चल दिया। बहू भी दूसरे के साथ निकल गई। बड़ी नाकिस जात है महतो, किसी की नहीं होती। कितना समझाया कि तू जो चाहे खा, जो चाहे पहन, मेरी नाक न कटवा, मुदा कौन सुनता है ? औरत को भगवान् सब कुछ दे, रूप न दे, नहीं तो वह काबू में नहीं रहती। कोठियां तो बंट गई होंगी?

होरी ने आकाश की ओर देखा और मानो उसकी महानता में उड़ता हुआ बोला - सब कुछ बंट गया चौधरी । जिनको लड़कों की तरह पाला-पोसा, वह अब बराबर के हिस्सेदार हैं,लेकिन भाई का हिस्सा खाने की अपनी नीयत नहीं है। इधर तुमसे रुपये मिलेंगे, उधर दोनों भाइयों को बांट दूंगा। चार दिन की जिंदगी में क्यों किसी से छल-कपट करूं? नहीं कह दूं कि बीस रुपये सैकड़े में बेचे हैं तो उन्हें क्या पता लगेगा । तुम उनसे कहने थोड़े ही जाओगे। तुम्हें तो मैंने बराबर अपना भाई समझा है।

व्यवहार में हम 'भाई' के अर्थ का कितना ही दुरुपयोग करें, लेकिन उसकी भावना में जो पवित्रता है, वह हमारी कालिमा से कभी मलिन नहीं होती।

होरी ने अप्रत्यक्ष रूप से यह प्रस्ताव करके चौधरी के मुंह की ओर देखा कि वह स्वीकार करता है या नहीं। उसके मुख पर कुछ ऐसा मिथ्या विनीत भाव प्रकट हुआ, जो भिक्षा मांगते समय मोटे भिक्षुकों पर आ जाता है।

चौधरी ने होरी का आसन पाकर चाबुक जमाया-हमारा तुम्हारा पुराना भाई-चारा है, महतो, ऐसी बात है भला, लेकिन बात यह है कि ईमान आदमी बेचता है, तो किसी लालच से। बीस रुपये नहीं, मैं पंद्रह रुपये कहूंगा, लेकिन जो बीस रुपये के दाम लो।

होरी ने खिसियाकर कहा-तुम तो चौधरी अंधेर करते हो, बीस रुपये में कहीं ऐसे बांस जाते हैं?

'ऐसे क्या,इससे अच्छे बांस जाते हैं दस रुपये पर, हां, दस कोस और पच्छिम चले जाओ। मोल बांस का नहीं है, सहर के नगीच होने का है। आदमी सोचता है, जितनी देर वहां जाने में