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पृष्ठ:गोदान.pdf/३२५

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गोदान : 325
 


खाकर ढिबरी के सामने बैठ जाता और सुतली कातता। कहीं बारह-एक बजे सोने जाता। धनिया भी पगला गई थी, उसे इतनी मेहनत करने से रोकने के बदले खुद उसके साथ बैठी-बैठी सुतली कातती। गाय तो लेनी ही है, रामसेवक के रुपये भी तो अदा करने हैं। गोबर कह गया है। उसे बड़ी चिंता है।

रात के बारह बज गए थे। दोनों बैठे सुतली कात रहे थे। धनिया ने कहा-तुम्हें नींद आती हो तो जाके सो रहो। भोरे फिर तो काम करना है।

होरी ने आसमान की ओर देखा-चला जाऊंगा। अभी तो दस बजे होंगे। तू जा, सो रह।

'मैं तो दोपहर को छन-भर पौढ़ रहती हूं।'

'मैं भी चबेना करके पेड़ के नीचे सो लेता हूं।'

'बड़ी लू लगती होगी।'

'लू क्या लगेगी? अच्छी छांह है।'

'मैं डरती हूं, कहीं तुम बीमार न पड़ जाओ।'

'चल, बीमार वह पड़ते हैं, जिन्हें बीमार पड़ने की फुरसत होती है। यहां तो यह धुन है कि अबकी गोबर आय, तो रामसेवक के आधे रुपये जमा रहें। कुछ वह भी लायगा। बस, इस साल इस रिन से गला छूट जाय, तो दूसरी जिंदगी हो।'

'गोबर की अबकी बड़ी याद आती है, कितना सुशील हो गया है।'

'चलती बेर पैरों पर गिर पड़ा।'

'मंगल वहां से आया तो कितना तैयार था। यहां आकर कितना दुबला हो गया है।'

'वहां दूध, मक्खन, क्या नहीं पाता था? यहां रोटी मिल जाय, वही बहुत है। ठीकेदार से रुपये मिले और गाय लाया।'

'गाय तो कभी आ गई होती, लेकिन तुम जब कहना मानो। अपनी खेती तो संभाले न संभलती थी, पुनिया का भार भी अपने सिर ले लिया।'

'क्या करता, अपना धरम भी तो कुछ है। हीरा ने नालायकी की तो उसके बाल-बच्चों को संभालने वाला तो कोई चाहिए ही था। कौन था मेरे सिवा बता? मैं न मदद करता, तो आज उनकी क्या गति होती, सोच। इतना सब करने पर भी तो मंगरू ने उस पर नालिस कर ही दी।'

'रुपये गाड़कर रखेगी तो क्या नालिस न होगी?'

'क्या बकती है। खेती से पेट चल जाय, यही बहुत है। गाड़कर कोई क्या रखेगा।'

'हीरा तो जैसे संसार से ही चला गया।'

'मेरा मन तो कहता है कि वह आवेगा, कभी न कभी जरूर।'

दोनों सोए। होरी अंधेरे मुंह उठा तो देखता है कि हीरा सामने खड़ा है, बाल बढ़े हुए, कपड़े तार-तार, मुंह सूखा हुआ, देह में रक्त और मांस का नाम नहीं, जैसे कद भी छोटा हो गया है। दौड़कर होरी के कदमों पर गिर पड़ा।

होरी ने उसे छाती से लगाकर कहा-तुम तो बिल्कुल घुल गए हीरा! कब आए? आज तुम्हारी बार-बार याद आ रही थी। बीमार हो क्या?

आज उसकी आंखों में वह हीरा न था, जिसने उसकी जिंदगी तल्ख कर दी थी, बल्कि वह हीरा था, जो बे-मां-बाप का छोटा-सा बालक था। बीच के ये पच्चीस-तीस साल जैसे मिट गए, उनका कोई चिन्ह भी नहीं था।