पृष्ठ:गोदान.pdf/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गोदान : 33
 


लगेगी, उतनी देर में तो दो-चार रुपए का काम हो जायगा। '
सौदा पट गया। चौधरी ने मिर्जई उतार कर छान पर रख दी और बांस कांटने लगा।
ऊख की सिंचाई हो रही थी। हीरा-बहू कलेवा लेकर कुएं पर जा रही थी। चौधरी को बांस काटते देखकर घूंघट के अन्दर से बोली -- कौन बांस काटता है? यहां बांस न कटेंगे।
चौधरी ने हाथ रोककर कहा -- बांस मोल लिए हैं, पन्द्रह रुपए सैकड़े का बयाना हुआ है। सेंत में नहीं काट रहे हैं।
हीरा-बहू अपने घर की मालकिन थी। उसी के विद्रोह से भाइयों में अलगौझा हुआ था। धनिया को परास्त करके शेर हो गई थी। हीरा कभी-कभी उसे पीटता था। अभी हाल में इतना मारा था कि वह कई दिन तक खाट से न उठ सकी, लेकिन अपना पदाधिकार वह किसी तरह न छोड़ती थी। हीरा क्रोध में उसे मारता था; लेकिन चलता था उसी के इशारों पर, उस घोड़े की भांति जो कभी-कभी स्वामी को लात मारकर भी उसी के आसन के नीचे चलता है।
कलेवे की टोकरी सिर से उतारकर बोली -- पन्द्रह रुपये में हमारे बांस न जायंगे।
चौधरी औरत जात से इस विषय में बात-चीत करना नीति-विरुद्ध समझते थे। बोले -- जाकर अपने आदमी को भेज दे। जो कुछ कहना हो, आकर कहें।
हीरा-बहू का नाम था पुन्नी। बच्चे दो ही हुए थे। लेकिन ढल गयी थी। बनाव-सिंगार से समय के आघात का शमन करना चाहती थी, लेकिन गृहस्थी में भोजन ही का ठिकाना न था, सिंगार के लिए पैसे कहां से आते। इस अभाव और विवशता ने उसकी प्रकृति का जल सुखाकर कठोर और शुष्क बना दिया था, जिस पर एक बार फावड़ा भी उचट जाता था।
समीप आकर चौधरी का हाथ पकड़ने की चेष्टा करती हुई बोली -- आदमी को क्यों भेज दूं। जो कुछ कहना हो, मुझसे कहो न। मैंने कह दिया, मेरे बांस न कटेंगे।
चौधरी हाथ छुड़ाता था, और पुन्नी बार-बार पकड़ लेती थी। एक मिनट तक यही हाथा-पाई होती रही। अन्त में चौधरी ने उसे जोर से पीछे ढकेल दिया। पुन्नी धक्का खाकर गिर पड़ी; मगर फिर संभली और पांव से तल्ली निकालकर चौधरी के सिर, मुंह, पीठ पर अन्धाधुन्ध जमाने लगी। बंसोर होकर उसे ढकेल दे? उसका यह अपमान। मारती जाती थी और रोती भी जाती थी। चौधरी उसे धक्का देकर -- नारी जाति पर बल का प्रयोग करके -- गच्चा खा चुका था। खड़े-खड़े मार खाने के सिवा इस संकट से बचने की उसके पास और कोई दवा न थी।
पुन्नी का रोना सुनकर होरी भी दौड़ा हुआ आया। पुन्नी ने उसे देखकर और जोर से चिल्लाना शुरू किया। होरी ने समझा, चौधरी ने पुनिया को मारा है। खून ने जोश मारा और अलगौझे की ऊंची बांध को तोड़ता हुआ, सब कुछ अपने अन्दर समेटने के लिए बाहर निकल पड़ा। चौधरी को जोर से एक लात जमाकर बोला -- अब अपना भला चाहते हो चौधरी, तो यहां से चले जाओ, नहीं तुम्हारी लहास उठेगी। तुमने अपने को समझा क्या है? तुम्हारी इतनी मजाल कि मेरी बहू पर हाथ उठाओ।
चौधरी कसमें खा-खाकर अपनी सफाई देने लगा। तल्लियों की चोट में उसकी अपराधी आत्मा मौन थी। यह लात उसे निरपराध मिली और उसके फूले हुए गाल आंसुओं से भीग गए ।