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पृष्ठ:गोदान.pdf/३३४

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334: प्रेमचंद रचनावली-6
 

देवकुमार जी के सुपुत्र हो तो दिल में क्या कहेंगे?

साधुकुमार ने कुछ जवाब न दिया। चुपचाप नाश्ता करके चला गया। वह अपने पिता की माली हालत जानता था और उन्हें संकट में न डालना चाहता था। अगर सन्तकुमार नये सूट की जरूरत समझते हैं तो बनवा क्यों नहीं देते? पिता के ऊपर भार डालने के लिए उसे क्यों मजबूर करते हैं?

साधु चला गया तो शैव्या ने आहत कंठ से कहा-जब उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि अब मेरा घर से कोई वास्ता नहीं और सब कुछ तुम्हारे ऊपर छोड़ दिया तो तुम क्यों उन पर गृहस्ती का भार डालते हो? अपने सामर्थ्य और बुद्धि के अनुसार जैसे हो सका उन्होंने अपनी उम्र काट दी। जो कुछ वह नहीं कर सके या उनसे जो चूकें हुईं उन पर फिकरे कसना तुम्हारे मुंह से अच्छा नहीं लगता। अगर तुमने इस तरह उन्हें सताया तो मुझे डर है वह घर छोड़कर कहीं अंतर्धान न हो जायं। वह धन न कमा सके, पर इतना तो तुम जानते ही हो कि वह जहां भी जायंगे लोग उन्हें सिर और आंखों पर लेंगे।

शैव्या ने अब तक सदैव पति की भर्त्सना ही की थी। इस वक्त उसे उनकी वकालत करते देखकर सन्तकुमार मुस्करा पड़ा।

बोला-अगर उन्होंने ऐसा इरादा किया तो उनसे पहले मैं अंतर्धान हो जाऊंगा। मैं यह भार अपने सिर नहीं ले सकता। उन्हें इसको संभालने में मेरी मदद करनी होगी। उन्हें अपनी कमाई लुटाने का पूरा हक था, लेकिन बाप-दादों की जायदाद को लुटाने का उन्हें कोई अधिकार न था। इसका उन्हें प्रायश्चित करना पड़ेगा। वह जायदाद हमे वापस करनी होगी। मैं खुद भी कुछ कानून जानता हूं। वकीलों, मैजिस्ट्रेटों से भी सलाह कर चुका हूं। जायदाद वापस ली जा सकती है। अब मुझे यही देखना है कि इन्हें अपनी संतान प्यारी है या अपना महात्मापन।

यह कहता हुआ सन्तकुमार पंकजा से पान लेकर अपने कमरे में चला गया।



दो

सन्तकुमार की स्त्री पुष्पा बिल्कुल फूल-सी है, सुंदर, नाजुक, हलकी-फुलकी, ल' लेकिन एक नंबर की आत्माभिमानिनी है। एक - एक बात के लिए वह कई कई दिन से रह सकती है। और उसका रूठना भी सर्वथा नई डिजाइन का है। वह किसी से कुर नहींलड़ती नहींविगइतो नहीं, घर का कामकाज उसी तन्मयता से करती है बल्कि उनसे ज्यादा एकाग्रता से। बस जिससे नाराज होती है उसकी ओर ताकती नहीं। वह जो कुछ कहेगा। वह करेगी , वह जो कुछ पूछेगा, जवाब देगीवह जो कुछ मांगेगा, उठाकर दे देगी, मगर बिना उसकी ओर ताके हुए। इधर कई दिन से वह सन्तकुमार से नाराज हो गई है और अपनी फिरी हुई आंखों से उसके सारे आघातों का सामना कर रही है।

सन्तकुमार ने स्नेह के साथ कहा-आज शाम को चलना है न?

पुष्पा ने सिर नीचा करके कहा- जैसी तुम्हारी इच्छा।