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340: प्रेमचंद रचनावली -6
 

-चेहरे से। -झूठे हो। तो फिर इतना और कई देता हूं कि आज भाई साहब ने तुम्हें भी कुछ कहा है। पुष्पा शेंपती हुई बोली-बिल्कुल गलतवह भला मुझे क्या कहते? अच्छा मेरे सिर की कसम ख़ा। कसम क्यों खाऊं? तुमने मुझे कभी कसम खाते देखा हैं?

-भैया कुछ कहा है जरूरनहीं तुम्हारा मुंह इतना उतरा हुआ क्यों रहता? भाई साहब से कहने की हिम्मत नहीं पड़ती वरन समझाता आप क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं। जो जायदाद बिक गई उसके लिए अब दादा को कोसना और अदालत करना मुझे तो कुछ नहीं जंचता। गरीब लोग भी तो दुनिया में हैं ही, या सब मालदार ही हैं। मैं तुमसे ईमान से कहता हूं भाभो. मैं जब कभी धनी होने की कल्पना करता हूं तो मुझे शंका होने लगती है कि न जाने से मन क्या हो जाय। इतने गरीबों में धनी होना मुझे तो स्वार्यान्विता-सी लगती है। मुझे तो इस दशा में भी अपने ऊपर लज्जा आती हैं, अब देखता हूं कि मेरे हो जैसे लोग ठोकरें खा रहे हैं। हम तो दोनों वक्त चुपड़ी हुई रोटियां और दूध और सेव-संतरे उड़ाते हैं। मगर स्नै में निन्यानवे आदमी तो ऐसे भी हैं जिन्हें इन पदार्थों के दर्शन भी नहीं होतेआखिर हममें क्या मुधव ज, पर लग गये हैं

पुष्पा इन विचारों की न होने पर भी मात्र की निष्कपट सच्चाई का आदर करतीं थी बोनी -तुम इतना पढ़ने का नहीं ये विचार तुम्हारे दिमाग में कहां से आ जाते हैं?

साधु न उठकर कहा शायद उस जन्म में भिटारी भा ।

पुष्पा ने उसका हाथ पकड़कर बैठाते हुए कहा- मेरी देवराना बेचा गहन -पई को नए ।

में अपना ध्यान हैं। न करूगा। मन में तां मना रद हांग का स पदरा । नहीं भाभी, तुम झूठ नहीं कहता: शार्द का तो मुझे ख्याल भी नहीं आताजिंदगी इा के लिए है कि किसी के काम आयेजहां सेवकों की इतनी जरूरत है वहां कुछ लोगों कां तो क्वाते रहना ही चाहिए। कभी शादी सगा भी तो ऐसी लड़की से जो मेरे स्गा गोवर्क की जिंदगी बसर करने पर राजी हो और जो मेरे जीवन को सच्ची सहगाभिनी बने। पुप इस प्रतिज्ञा को भी हंसी में उड़ दिया- पहले सभी युवक इसी तरह की कन्ना किया करते हैं। लेकिन शादी में देर हुई तो उपद्रव मचाना शुरू कर देते हैं। साधुकुमार ने जोश के साथ कहा - मैं उन युवकों में नहीं हूं भाभी अगर कभी भन मंचन हुआ तो जहर खा लगा। पुष्पा ने फिर कटाक्ष किया - तुम्हारे मन में तां वीवी ( पंकजा ) बसी हुई है। तुम से कोई बान को तो तुम बनाने लगती हो, इसी से मैं तुम्हारे पास नहीं आए अच्छा सच कहना पकजा जैसी बीवी था तो विवाह करो या नहीं? माथुकुमार उठकर चला गया। पुष्पा रोकती रही पर वह हाथ छुड़ाकर भाग गया इस आदर्शवादी, सरन प्रकृति मुशीलमम्य युवक से मिलकर पुष्पा का मुरझाया हुआ मन खिल उठता था। वह भीतर से जितनी भारी की, बाहर से उतनी ही हल्की थी। सन्तकुमार से तो उसे