अपने अधिकारों की प्रतिक्षण रक्षा करनी पड़ती थी, नौकन्ना रहना पड़ता था कि न जाने व
उसका । शैव्या सदैव पर शासन चाहती थींऔर न
बार हो जायउस करना , एक क्षण भी
भूलती थी कि वह घर को स्वामिनी है और हरेक आदमी क7 उस ग्रह अधिकार स्त्रोद्धार
करना चाहिए। देवकुमार ने सारा भार सन्तकुमार पर डालकर वास्तव में शैव्या की गद्दी छीन
ली कि
थी। वह यह भूल जाती थी देवकुमार के स्वामी रहने पर ही वह घर की स्वमिनी
रही। अब वह माने की देवी थीं जो केवल अपने आशावादों के बन पर ही पुज सकती है।
मन का यह के लिए वह सदैव अपने अधिकारों की परीक्षा लेती रहती थी।
संदेह मिटाने
यह चोर किसी बीमारी की तरह उसके अंदर जड़ पकड़ चुका था और असली भोजन को
न पचा सकने के कारण उसकी प्रकृति चटोरी होती जाती थी। पुष्पा उनसे बोलते डरती थी,
उनके पास जाने का साहस न होना था। रही पंकजाउसे काम करने का रोग था। उसका काम
ही उसका विनोद मनोरंजन सब कुछ थाशिकायत करता उसने सोचा ही न था। बिल्कुल
देवकुमार का- सा स्वभाव पाया था। कोई चार बात कह दे, सिर झुकाकर सुन लेगी। मन में
किसी तरह का ट्रेप या मलाल न आने देगी। समरे से दस-ग्यारह बजे रात तक उसे दम मारने
की मोहलत न थी। अगर किसी कं कुरते के बटन टूट जाते . : पंकजा टांगीकि के
कपड़े कहां रखे हैं यह रहस्य पंक्र जा के सिवा और कोई न जानता था। और इतना कम करने
पर भी वह पढ़ने और ब्रे-जर्र बनाने का समय भी न आने से निकाल लेती थी। घर में
जित थ सबां पर पंकजा की कलाप्रियता के चिह्न ऑक्त थे। मंज' के मेजपोश, कुरसियों
के गद्देसंदूकों के गिल्लाफ मय असकी कलाकृतियों से रंजिश थे। रे और मखमल कं तरह
तरह के पक्षियों और फलों के चित्र बनाकर अमन फ्रेम व ना लिये थे जो दीवानखाने की शोभा
बढ़ा रहे थे। और अ" गाने अजने का शक भी था। सितार बजा लेती श्रो, और हारमोनियम
तो उसके लिए रब्रल था। हां, किसी के सामने गाने-बजाते शामाती थी इसके साथ ही वह
स्कूल भी जाती थी और उसका शुमार अच्छी लड़कियों में था। पन्द्रह रुपया महीना उसे वजीफा
मिलता था। उसके पास इतनी फुर्सत न थी कि पुष्पा के पास घड़ी-द-धी के लिए आ बैठे
और हंसी-मआई करेउसे हंसी-मजाक आना भी न थ। न मजाक समझती थी, न उसका
जवाब देती थी। मां को अपने जीवन का भार हन्ता करने क साधु ही मिल जाता
धाम पनि ने तो उल्टे उस पर और अपना बोझ ही लाद दिया था।
साधु चला गया ता पुष्पा फिर उसी ख्यान्न में डूब-इंस ,पना बोझ उठाए। इसीलिए
तो पतिदेव उस पर यह रोब जमाते हैं। जानते हैं कि इसे चाहे जितना राता. कहीं जा नहीं
सकतीकुछ बोल नहीं सकती। हां. उनका ख्याल ठीक हैं। उसे बिलास वस्तुओं से रुचि
हैं। वह अच्छा खाना चाहती हैं, आराम से रहना चाहती है । एक बार वह विलास का मोह
त्याग दे और त्याग करना सीख लेफिर उस पर कोन रॉव जमा सकेगाफिर वह क्यों किसी
से द्वेगी शाम गई खिड़की रही थी।
हो थी। पुष्पा के सामने खड़ी बाहर की ओर देद उसने
देखा बीस-पच्चीस लड़कियों और स्त्रियों का क दल एक स्वर से एक गीत गाता चला
जा रहा था किसी को देह पर साबित कपड़े तक न थे। सिर और मुंह पर गर्द जमी हुई थी।
बाल रूखे हो रहे थे जिनमें शायद महीनों से तेल न पड़ा हो। यह मजूरनी थीं जो दिन भर
इंट और गारा ढोकर घर लौट रही थीं। सारे दिन उन्हें धूप में तपना पड़ा होगा, मालिक को
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मंगलसूत्र : 341