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342: प्रेमचंद रचनावली-6
 

घुड़कियां खानी पड़ी होंगी शायद दोपहर को एक- एक मुट्ठी चबेना खाकर रह गई हों।फिर भी कितनी प्रसन्न थीं, कितनी स्वतंत्र। इनकी इस प्रसन्नता का, इस स्वतंत्रता का क्या रहस्य



तीन

मि• सिन्हा उन आदमियों में हैं जिनका आदर इसलिए होता है कि लोग उनसे डरते हैं। उन्हें देखकर सभी आदमी ‘आइएआइएकरते हैं, लेकिन उनके पीठ फेरते ही कहते हैं- बड़ा ही मूजी आदमी है, इसके काटे का मंत्र नहींउनका पेशा है मुकदमे बनाना! जैसे कवि एक कल्पना पर पूरा काव्य लिख डालता है, उसी तरह सिन्हा साहब भी कल्पना पर मुकदमों की सृष्टि कर डालते हैं। न जाने बह कवि क्यों नहीं हुए? मगर कब्रि होकर वह साहिब की चाहे जितनी वृद्धि कर सकतेअपना कुछ उपकार न कर सकतेकानून की उपासना करके उन्हें सभी सिद्धियां मिल गई थीं। शानदार बंगले में रहते थेबड़ेबड़े ईसों और हुक्काम से दोस्ताना था, प्रतिष्ठा भी थी , रोब भी था। कलम में ऐसा जादू ना कि मुकदमे में जान डाल देतेऐसे- ऐसे प्रसंग सोच निकालते. ऐसे-ऐसे चरित्रों की रचना करते कि उन्पना स डीव हो जाती थी।बड़ेबड़ेधाय जज भी उसकी तह तक न पहुंच सकतेसब कुद इतना स्वाभाविक इतना संवद्ध होता था कि उस पर ध्या का भ्रम तक न हो सकता था। वह सन्नकुमार से साथ के पढ़े हुए थे। दोनों में गहरी दोस्ती थी। सन्तकुमार के मन में एक भावना अली और सिन्हा ने उसमें रंगरूप भर कर जीता-जागता पुतला खड़ा कर दिया और आज मुकदमा दायर करने का निश्चय किया जा रहा है। नौ बजे होंगे वकील और मुवक्किल कचहरी जाने की तैयारी कर रहे हैं।सिन्हा अप भजे कमरे में मेज पर टांग फैलाए लेट हुए हैं। गरे-चिट्टे आदमा, ऊंचा कद, एक्रम बदन, बड़े-बड़ेवाल पीछे को कब से ऐंचे हुएमहें साफ, आखों पर एनक, लां पर भिगा। चेहर पर प्रतिभा का प्रकाश, आंखों में अभिमान, ऐसा जान पड़ता है कोई बच रईस है। साकुमार मीची अचकन पहनेफल्ट कैंप लगाए कुछ चिंतित से बैठे हैं। सिन्हा ने आश्वासन दिया -नुम नाइक्र इग्ते हो। मैं कहता हूं हमारी फतेह है। ऐसी ई ओ . , नजीमें मौजूद हैं जिसमें बेटों-पोतों ने बैनामे मंसूखे कगये हैं। पक्की शहादत चाहिए और उसे जमा करना बाएं हाथ का खेल है। सन्तकुमार ने दुविधा में पड़कर कहा लेकिन फादर को भी तो राजी करना होगा उनकी इच्छा के विना तो कुछ न हो सकेगा। - उन्हें सीधा करना तुम्हाग काम है। लेकिन उनका सीधा होना मुश्किल है। तो उन्हें भी गोली मारी। हम मावित करेंगे कि उनके दिमाग में खलल है। -यह साबित करना आसान नहीं है। जिसने बड़ी-बड़ी किताबें लिख डालीं, जो समय समाज का नेता समझा जाता हैजिसकी अक्लमंदी को सारा शहर मानता है, उसे दीवाना कंसें