-बहुत मुमकिन है वह आपकी सहानुभूति पा जाय और आप उसकी हिमायत करने -तो क्या आप चाहते हैं मैं आपको एकतरफा डिगरी दे दें? मैं केवल आपकी दया और हमदद चाहता हूं। आपसे अपनी मनोव्यथा कहकर दिल का बोझ हल्का करना चाहता हूं। उसे मालूम हो जाय कि मैं आपके यहा आता-जाता हूं ता एक नया किस्सा ख़डा कर दे तिब्बी ने सीधे व्यंग्य किया तो आप उससे इतना डरते क्यों हैं? डरना तो मुझे चाहिए। सन्तकुमार ने और गहरे में जाकर कहा मैं आपके लिए ही डरता हूं, अपने लिए नहीं! तिब्बी निर्भयता से बोली-जी नहीं, आप मेरे लिए न डरिए। मेरे जीते जी, मेरे पीछेआप पर कई बहा हो यह मैं नहीं दे सकता
- आपका मालूम है मुझ भावुकता पसंद नहीं
यह भावुकता नहीं, मन के सच्चे भाव हैं। मैंने सच्चे भाववाले युवक बहुत कम देखे -दुनिया में सभी तरह के लोग होते हैं। अधिकतर शिकारी किस्म कें। स्त्रियों में तो वेश्याएं हो शिकारी होती हैं। पुरुषों में तो सिरे को भी शिकारी होने हैं। -जो नहीं, उनमें अपवाद भी बहुत है। स्त्री रूप नहीं देखतीपुरुष जब गिरेगा रूप पर। इसीलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मेरे यहां कितने ही रूप के उपासक आते हैं। शायद इस वक्त भी कोई साहब आ रहे हों। में आपवती , इसमें नम्रता का कोई प्रश्न नहीं मगर मैं नहीं चाहती कोई मुझे केवल रूप के लिए चाहे। सन्नकुमार ने धड़कते हुए मन से कहा- आप उनमें मेरा तो शुमार नहीं करतीं? तिब्बो ने तत्परता के साथ कहा-आपको तो मैं अपने चाहने वालों में समझती ही नहीं। सन्तकुमार ने माथा झुकाकर कहा-यह से दुर्भाग्य है। अप दिन से नहीं कह रहे हैं. मुझे कुछ ऐसा लगता है कि 'पका मन नहीं पाती। आप उन आदमियों में हैं जो हमेशा रहस्य रहते हैं। यही तो मैं आपके विषय में सोचा करता हूं। -मैं रहस्य नहीं हूं। मैं तो साफ कहती हूं में ऐसे मनुष्य की खोज में हूं, जो मेरे हदय में को। सोये हुए प्रेम जगा देहां, वह बहुत नीचे गहराई में है, और उसी को मिलेगा जो गहरे पानी में डूबना जानता हो ! आपसे मैंने कभी उसके लिए बैचेनी नहीं पाई। मैंने अब तक जीवन काम रोशन पहलू ही देरखा है।और उससे ऊब गई। अब जीवन का अंधेरा पहलू देखना चाहती हूं। जहां त्याग है, रुदन है, उत्सर्ग है। संभव है उस जीवन से मुझे बहुत जल्द घृणा हो जाय न मेरी आत्मा यह नहीं स्वीकार करना चाहती कि वह किसी ऊंचे ओहदे की गुलामी या कानूनी धोखेधड़ी या व्यापार के नाम से की जाने बाomलूट को अपने जीवन का आधार बनाए। श्रम और त्याग का जीवन ही मुझे तथ्य जान पड़ता है। आज जो समाज और देश की दूषित अवस्था है उससे असहयोग करना मेरे लिए जुनून से कम नहीं है। मैं कभी-कभी अपने ही से। घृणा करने लगती हूंबाबू जी को एक हजार रुपये अपने छोटे से परिवार के लिए लेने का