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मंगलसूत्र : 349
 


की वायु में उनका जैसे दम घुटने लगा था। उनका कपटी मन इस निष्कपटसरल वातावरण में अपनी अधमता के ज्ञान से दबा जा रहा था जैसे किसी धर्मनप्ठ में अधर्म विचार घुस मन तो गया हो पर वह कोई आश्रय न पा रहा हो। तिब्बी ने आग्रह किया-कुछ देर और चैटि न?

आज आज्ञा दीजिएफिर कभी अऊंगा

- कब आइएगा

जल्द ही आग।

- काश, मैं आपका जीवन सुखी बना सकती ।

सन्तकुमार बरामदे में दकर नीचे उतरे और ने जी म हाते के बाहर चले गएतिब्बी बरामदे में घड़ी उन्हें अनुरक्त ों से देखती रही। वह कठोर थी. चंचल थी, दुर्लभ थी रूपगर्विता थी, चतुर भी, किसी को कुछ समझनी न थी, न कोई उसे प्रेम का स्वांग भरकर ठग सकता था, पर जैसे कितनी ही वेश्याओं में मारी आसक्तियां के बीच में भक्त-भावना छिपी। रहती है, उसी तरह उसके मन में भी सार अविश्वास के क्ध में कोमलसहमा हुआ विश्वास छिपा बैठा था और उसे स्पर्श करने की कनाजिम आती हो वह अरं बेवक्फ बना सकता था। उस कोमल भाग का ग्प होते ही वह सीधी स्पदा, स्मरत्न विश्वासमयी, कातर बाल्म्किा बन जाती थी। आज इत्तफाक से सन्नकुमार ने द अमन पा लिया था और अब वह जिस तरफ चाहे उम न जा सकता है. मानो वह ममगइज ा गइ था। स५राकुमार में उसे कोई दोष नहीं नजर आताअभभागनी शुपा इस सत्यपुरुष का जीवन कैसा नटकिए डालती है। इन्हें तो ऐसी गनी चाहिए जो इन्हें प्रोत्साहित करें, पशः अन्ना पर ची रहे। पुष्पा नहीं जानता वह इनके जीवन का रा बनकर १1ाज क कितना अन्टि कर रही । है। रि इतने पर । भी सन्नकुमार का। ये रTने वाघ रघुना द्र त्न से कम नहीं। एन7 व लोन गो सेवा करें, कैसे उनका जीवन ट्रा कई !



चार

मन्नकुमार यहां म । चले तो उनका हृदय कारा में था। इतनी जन्द देवा से उन्हें वरदान मिन्नेगा इसकी उन्होंने आशा न की थी। कुछ कदीर ने हो जोर मारा, नहीं तो जो युवती अच्छे अच्छों को उंगनियों पर अचाती हैउन पर क्यो इतनी भक्ति करनी। अब उन्हें विलंब न करना चाहिए। क्रोन जाने कब तक के विरुद्ध हो जाय। और यह दो ही चार मुलाकातों में होने वाला है। तन्वी उन्हें कार्य क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा करेगी और वह पीछे हटेंगे। वहीं मतभेद हो जाएगा। यहां से वह सीधे मि सिन्हा के घर पहुंचे। शाम हो 7 थी। कुहरा पड़ना शुरू हो गया था। मि सिन्हा सजे सजाए कaजाने को तैयार खड़े थे। इन्हें देखते ही

किधर से?

-वहीं से। आज तो रंग जम गया।