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मंगलसूत्र : 351
 

दोनां तरफ से शास्त्रार्थ होने लगे। देवकुमार मर्यादाओं और सिद्धांतों और धर्म-बंधनों को आड़ ले रहे थे, पर इन दोनों नौजवानों की दलीलों के सामने उनकी एव न चलती थी। वह अपनी सुफेद दाढ़ी पर हाथ फेर-फेरकर और रल्वाट रिसर खुजा-रह्ज कर जो प्रमाण देते थे उसको यह दोनों युवक चुटकी बजात तून डालते थे, ध्रुनकर उड़ा देते थे।

सिन्हा कहा ने निर्दयता के साथ -बाबूजी, आप न जाने किस जमाने की बातें कर रहे । हैं। कानून से हम जितना फायदा उठा सकेंहमें उठाना चाहिए। उन दफों का मंशा ही यह है कि उनसे फायदा उठाया जाय। अभी आपने देखा जमींदारों की जान महाजन से बचाने के लिए सरकार ने कानून बना दिया है और कितनी मिल्कियतें जमींदारों को वापस मिल गई। क्या आप इसे अधर्म कहेंगे? व्यावहारिकना का अर्थ यही है कि हम जिन कानूनी साध , नों से अपना काम निकाल सकें, निकालें। मुझे कुछ लेना-देना नहीं, न मेरा कोई स्वार्थ है। सन्तकुमार मेरे मित्र हैं और इसी बाम्ते में आपसे यह निवेदन कर रहा हूं। मानें या न मानें आपको अख्तियार है।

देवकुमार ने लाचार होकर कहा—तो आख़िर तुम लोग मुझे क्या करने को कहते हो?

कुछ नहीं, केवल इतना ही कि हम जो कुछ करें आप उस विरुद्ध कोई कार्रवाई न कर .

म सत्य का हत्या ही नहा दरव सक्ला।

जानकमार ने आंखें निकाल कर उनंजित वर में कहा-तो फिर आपको मेरी हत्या देखनी

सिन्हा ने मन्तकुमार का डाटा -क्या फजूल की बातें करते हो सन्तकुमार ' बाबू जी को दो चार दिन सोचने का मौका दो तुम 9भी किसी बच्चे के बाप नहीं हो। तुम क्या जानो बाप को वटा कितना प्यारा होता है। वह अ९ से कितना ही विरोध करेंलेकिन जब नालिश दायर हो जाय तो देख़ुना वह क्या करते हैं। हमारा दावा यह होगा कि जिस वक्त आपने यह बैनामा लिखाआपके होश-हवस ठीक न थे और अब भी आपको कभी-कभी जुनून का दौरा हो जाता है। हिन्दुस्तान जैसे गर्म मुल्क में यह मरज बहुतों को होता है, और आपको भी हो गया । तो कोई आश्चर्य नहीं। हम मिबल सर्ज इसकी तसदीक कर र" देंगे।

देवकुमार ने हिकारत के साथ कहा- मेरे जीते-जी यह ध” , "नहीं हो सकती। हरगिज नहीं। मैंने जो कुछ किया सोच-समझकर और परिस्थितियों के दबाव से कियामुझे उसका बिल्कुल अफसोस नहीं हैं। अगर तुमने इस तरह का कोई दावा किया तो उसका सबसे बड़ा विरोध मेरी ओर से होगा. मैं कह देता हूं।

और वह अवश में आकर कमरे में टहलने नगे।

सन्तकुमार भी खड़े धमकाते हुए कहा -तो मेरा भी आपको चैलेंज । या तां ने होकर है आप अपने धर्म ही की रक्षा करेंगे या मेरी। आप फिर मेरी सूरत न देखेंगे।

-मुझम अपना , पत्नी और पुत्र सबसे प्यारा है।

सिन्हा ने सन्तकुमार को आदेश किया-तुम आज दख़रत दे दो कि आपके होश-हवास में फर्क आ गया और मालूम नहीं आप क्या ५र । आपको हिरासत में ले लिया जाय।

देवकुमार ने मुट्ठी तानकर क्रोध के आवेश में पूछा- मैं पागल हूं?

-जी हां, आप पागल हैं। आपके होश बना नहीं हैं। ऐसी बातें पागल ही किया करते