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357: प्रेमचंद रचनावली-6
 


पुस्तकें पढ़ी थीं, और उनकी रचनाओं का पूरा सेट उनके पुस्तकालय में था। हिंदी भाषा के प्रेमी थे और नागरीप्रचार सभा को कई बार अच्छी रकमें दान दे चुके थे। पंडा-पुजारियों के नाम से चिढते , दूषित दान प्रथा पर एक पैम्पलेट भी छपवाया था। लिबरल विचारों के लिए नगर में उनकी ख्याति थी। मक्यूलाल मारे मोटापे के जगह से हिल न सकते थे, गिरधर दास गठीले आदमी थे और नगर-व्यायामशाला के प्रधान ही न थे, अच्छे शहसवार और निशानेबाज थे।

एक क्षण तो बह देवकुमार के मुंह की ओर देखते रहे। उनका आशय क्या है, यह समझ में ही न आयाफिर ख्याल आया बेचारे अर्थिक संकट में होंगेइससे बुद्धि भ्रष्ट हो गई। है। बेतुकी बातें कर रहे हैं। देवकुमार के मुख पर विजय का गर्व देखक्रर उनका यह बयान और मजबूत हो गया।

सुनहरी ऐनक उतारकर मेज पर रखकर विनोद भात्र से बोने कहिए, घर में तो सत्र कुशल तो हैं?

देवकुमार ने विद्रोह के भाव से कहा- जी हां, सब आपकी कृपा है।

बड़ा लड़का तो वकालत कर रहा है न?

- जी हां

-मगर चन्ननी & होगी और आपकी पुस्तक भी आजकल कम बिकत होंगी।यह देश का दुर्भाग्य है कि आप जैसे सरस्वती के पुत्रों का यह अनादर ' आप यूरोप में होते तो औr लालों क स्वामी नरात!

-आप जानते हैं, मैं लदी के उपासकों में नहीं हूं।

-धन संकट में तो हमें हो। मुझन से जो कुछ सेवा आप कहेंउसके लिए तैयार हूं। मुझे तो गर्व है कि आप जैसे प्रतिभाशाली पुरुप से मेरा परिचय है। आपकी कुछ सेवा कर," मेरे लिए गौरव की बात होगी।

देवकुमार ऐसे अवसरों पर नम्रता के पुतले बन जाने थे। भक्ति और प्रशंसा देकर फो: उनका सर्वस्व ले सकता था। एक लग्नपती आदमी और वह भी स्माहित्य का प्रेमी जब कर इतना सम्मान करता है तो ‘उससे जायदाद या लेन-देन की बात करना उन्हें लन्जाजनक : मा1 हुआ। बोले-आपकी उदारता है जो मुझे इस योग्य समझते हैं।

-मैंने सपझा नहीं अप किस जायदाद की बात कह रहे थे।

देवकुमार मकुचाते हुए बोन्ने- अजो वही, जो सेट मलाल ने मुझसे रिलठाई भी।

अन्छा ना उपक विषय में कोई नयी बात है ?

-उसी मामले में लड़के आपके ऊपर कोई दावा करने वाने हैं। मैंने बहुत समझाया.मगर मानते नहीं आपके पास इसीलिए आया था कि कुछ न - देकर समझौता कर लीजिएमामला अदालत में क्यों जाय: नाहक दोनों जेरबार होंगे।

गिरधर दास का जहीन.मुरौवतदार चेहग कठोर हो गया। जिन महाजनी नखों को उन्होंने भद्रता की नर्म गद्दी में छिपा रखा था, वह यह टूटका पाते ही पैने और उग्र होकर बाहर निक आये

क्रोध को दन्बाने हुए बोले आपको मुझे समझाने के लिए यहां आने की तकलीफ उठाने की कोई जरूरत न थी। उन लड़कों ही को समझाना चाहिए था।