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मंगलसुत्र : 350
 


जायगी और वह हाथ बढ़ाकर लेंगे वह दृश्य का लज्जाजनक होगा जिसने कभी धन के लिए हाथ नहीं फैला या वह इस आखरी वक्त में दस का दान ? यह दान ही है, और कल नहीं। एक क्षण के लिए उनक्रा आत्मसम्मान विद्रोही बन गया इस अवसर पर उनके लिए शोभा यही देता है कि वह थैली पाते ही उसी जगह किसी सार्वजनिक संस्था को दे दें। उनके जीवन के आदर्श के लिए यही अनुकूल होगा, लोग उनसे यही आशा रखते हैं, इसी में उनका गौरव है। वह पंडाल में पहुंचे तो उनके मुख पर उल्लास की झलक न थी। वह कुछ रियमियाये से लगने थे। नेकनामी की लालसा एक ओर खींची थी, लोभ दूसरी और मन को कैसे समझाएं कि यह दान दान नहींउनका हक्र है। लोग हंसेंगे , अखिर ऐसे पर टूट पड़ा। उनका जीवन बोडिक था, और वृद्धि जो कुछ करती है नीति पर कसकर करनी है। नीति का सहारा मिल जाय तो फिर वह दुनिया की परवाह नहीं करनी वह पहुंचे तो स्वागत हआ. मंगल-गान हुआ, व्याख्यान होने लगेfनमें उनकी कीर्ति गाई गई। मगर उनकी दशा उम आदमी की-सी हो रही थी जिसके सिर में दद हो रहा हो। उन्हें इस वक्त इस दद को दवा चाहिएकुछ अच्छा नहीं लग रहा है। सभी विद्वान् हैं, मगर उनकी आलोचना कितनी उथलीऊपरी है जैसे कई उनके संदेशों को समझा ही नहीं, जैसे यह सारी वाह-वाह और माग यद37, ध- भक्ति के सिवा और कुछ न था। कोई भी उन्हें नहीं समझाकिस प्रेरणा ने चालीस साल तक उन्हें संभाले रखाबह क्रोन-सा प्रकश था जिसको ज्योति की मंद नहीं हुई|

प' या उन्हे एक आश्रम मिल गया और इनऊ विचारशीलपीले मुख पर हान्की मी मुर्सी दौड़ गई। यह दान नहीं प्राविडेंट फंड है आज तक उनकी आमदनी से जा जी त टता रहा है। मकाक की नोकरी में लोग पंश पाते . क्या वह दान है? उन्हांने जनता की सेवा जी है. तन- मन से की है इस धुन में की है ज: बड़ेम-बड़े वेतन से भी न आ सकती थी। पंशन नन में क्या अनाज आये ।

गज साइब ने जब चेन्नई भेंट देखेमार के मुंह पर गव था, हर्ष था, विजय थीं। दे यां e n o