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गोदान : 43
 


है। छोटी मछलियां या तो उसमें फंसती ही नहीं या तुरंत निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीड़ा की वस्तु है, भय की नहीं। भाइयों से होरी की बोलचाल बंद थी, पर रूपा दोनों घरों में आती-जाती थी। बच्चों से क्या बैर।

लेकिन रूपा घर से निकली ही थी कि धनिया तेल लिए मिल गई। उसने पूछा-सांझ की बेला कहां जाती है, चल घर।

रूपा मां को प्रसन्न करने के प्रलोभन को न रोक सकी।

धनिया ने डांटा—चल घर, किसी को बुलाने नहीं जाना है।

रूपा का हाथ पकड़े हुए वह घर आई और होरी से बोली-मैने तुमसे हजार बार कह दिया, मेरे लड़कों को किसी के घर न भेजा करो । किसी ने कुछ करकरा दिया, तो मैं तुम्हें लेकर चाटूंगी? ऐसा ही बड़ा परेम है , तो आप क्यों नहीं जाते? अभी पेट नहीं भरा जान पड़ता।

होरी नांद जमा रहा था। हाथों में मिट्टी लपेटे हुए अज्ञान का अभिनय करके बोला-किस बात पर बिगड़ती है भाई? यह तो अच्छा नहीं लगता कि अंधे कूकुर की तरह हवा को भूंका करे।

धनिया को कुप्पी में तेल डालना था। इस समय झगड़ा न बढ़ाना चाहती थी। रूपा भी लड़कों में जा मिली।

पहर रात से ज्यादा जा चुकी थी। नांदे गड़ चुकी थी। सानी और खली डाल दी गई थी। गाय मन मारे उदास बैठी थी, जैसे कोई वधू ससुराल आई हो। नांद में मुंह तक न डालती थी। होरी और गोबर खाकर आधी-आधी रोटियां उसके लिए लाए, पर उसने सूंघा तक नहीं। मगर यह कोई नई बात न थी। जानवरों को भी बहुधा घर छूट जाने का दु:ख होता है।

होरी बाहर खाट पर बैठकर चिलम पीने लगा, तो फिर भाइयों की याद आई। नहीं, आज इस शुभ अवसर पर वह भाइयों की उपेक्षा नहीं कर सकता। उसका हृदय यह विभूति पाकर विशाल हो गया था। भाइयों से अलग हो गया है, तो क्या हुआ। उनका दुश्मन तो नहीं है। यही गाय तीन साल पहले आई होती, तो सभी का उस पर बराबर अधिकार होता। और कल को यही गाय दूध देने लगेगी, तो क्या वह भाइयों के घर दूध न भेजेगा या दही न भेजेगा? ऐसा तो उसका धरम नहीं हैं। भाई उसका बुरा चेतें, वह क्यों उनका बुरा चेते? अपनी-अपनी करनी तो अपने-अपने साथ है।

उसने नारियल खाट के पाए से लगाकर रख दिया और हीरा के घर की ओर चला। सोभा का घर भी उधर ही था। दोनों अपने-अपने द्वार पर लेटे हुए थे। काफी अंधेरा था। होरी पर उनमें से किसी की निगाह नहीं पड़ी। दोनों में कुछ बातें हो रही थीं। होरी ठिठक गया और उनकी बातें सुनने लगा। ऐसा आदमी कहां है, जो अपनी चर्चा सुनकर टाल जाय?

हीरा ने कहा-जब तक एक में थे, एक बकरी भी नहीं ली। अब पछाई गाय ली जाती है। भाई का हक मारकर किसी को फलते-फूलते नहीं देखा।

सोभा बोला-यह तुम अन्याय कर रहे हो हीरा। भैया ने एक-एक पैसे का हिसाब दे दिया था। यह मैं कभी न मागूंगा कि उन्होंने पहले की कमाई छिपा रखी थी।

‘तुम मानो चाहे न मानो, है यह पहले की कमाई।'