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52 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


के बाद कभी-कभी मुंह का सवाद बदलने के लिए हलवा-पूरी भी चाहिए। और ऐसों को भी देखती हूं, जिन्हें घर की रोटी-दाल देखकर ज्वर आता है। कुछ बेचारियां ऐसी भी हैं, जो अपनी रोटी-दाल में ही मगन रहती हैं। हलवा-पूरी से उन्हें कोई मतलब नहीं। मेरी दोनों भावजों ही को देखो। हमारे भाई काने-कुबड़े नहीं हैं, दस जवानों में एक जवान हैं, लेकिन भावजों को नहीं भाते। उन्हें तो वह चाहिए, जो सोने की बालियां बनवाए, महीन साड़ियां लाए, रोज चाट खिलाए। बालियां और साड़ियां और मिठाइयां मुझे भी कम अच्छी नहीं लगतीं, लेकिन जो कहो कि इसके लिए अपनी लाज बेचती फिरुं तो भगवान् इससे बचाएं। एक के साथ मोटा-झोटा खा-पहनकर उमिर काट देना, बस अपना तो यही राग है। बहुत करके तो मरद ही औरतों को बिगाड़ते हैं। जब मरद इधर-उधर ताक-झांक करेगा तो औरत भी आंख लड़ाएगी। मरद दूसरी औरतों के पीछे दौड़ेगा, तो औरत भी जरूर मरदों के पीछे दौड़ेगी। मरद का हरजाईपन औरत को भी उतना ही बुरा लगता है, जितना औरत का मरद को। यही समझ लो। मैंने तो अपने आदमी से साफ-साफ कह दिया था, अगर तुम इधर-उधर लपके, तो मेरी जो भी इच्छा होगी, वह करूंगी। यह चाहो कि तुम तो अपने मन की करो और औरत को मार के डर से अपने काबू में रखो, तो यह न होगा, तुम खुले-खजाने करते हो, वह छिपकर करेगी, तुम उसे जलाकर सुखी नहीं रह सकते।

गोबर के लिए यह एक नई दुनिया की बातें थीं। तन्मय होकर सुन रहा था। कभी-कभी तो आप-ही-आप उसके पांव रुक जाते, फिर सचेत होकर चलने लगता। झुनिया ने पहले अपने रूप से मोहित किया था। आज उसने अपने ज्ञान और अनुभव से भरी बातें और अपने सतीत्व के बखान से मुग्ध कर लिया। ऐसी रूप, ज्ञान की आगरी उसे मिल जाय,तो धन्य भाग। फिर वह क्यों पंचायत और बिरादरी से डरे?

झुनिया ने जब देख लिया कि उसका गहरा रंग जम गया, तो छाती पर हाथ रख कर जीभ दांत से काटती हुई बोली-अरे, यह तो तुम्हारा गांव आ गया। तुम भी बड़े मुरहे हो, मुझसे कहा भी नहीं कि लौट जाओ।

यह कहकर वह लौट पड़ी।

गोबर ने आग्रह करके कहा-एक छन के लिए मेरे घर क्यों नहीं चली चलती? अम्मा भी तो देख लें।

झुनिया ने लज्जा से आंखें चुराकर कहा-तुम्हारे घर यों न जाऊंगी मुझे तो यही अचरज होता है कि मैं इतनी दूर कैसे आ गई। अच्छा बताओ, अब कब आओगे? रात को मेरे द्वार पर अच्छी संगत होगी। चले आना, मैं अपने पिछवाड़े मिलूंगी।

'और जो न मिली?'

'तो लौट जाना।'

'तो फिर मैं न आऊंगा'

'आना पड़ेगा, नहीं कहे देती हूं।'

'तुम भी बचन दो कि मिलोगी?'

'मैं बचन नहीं देती।'

'तो मैं भी नहीं आता।'

'मेरी बला से ।'