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पृष्ठ:गोदान.pdf/५७

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गोदान : 57
 


तोड़ देना चाहते हैं।

दूसरी मोटर आ पहुंची और मिस्टर खन्ना उतरे, जो एक बैंक के मैनेजर और शक्कर मिल के मैनजिंग डाइरेक्टर हैं। दो देवियां भी उनके साथ थीं। रायसाहब ने दोनों देवियां को उतारा। वह जो खद्दर की साड़ी पहने बहुत गंभीर और विचारशील-सी हैं, मिस्टर खन्ना की पत्नी, कामिनी खन्ना हैं। दूसरी महिला जो ऊंची एड़ी का जूता पहने हुए हैं और जिनकी मुख-छवि पर हंसी फूटी पड़ती है, मिस मालती हैं। आप इंग्लैंड से डाक्टरी पढ़ आई हैं और अब प्रैक्टिस करती हैं। ताल्लुकेदारों के महलों में उनका बहुत प्रवेश है। आप नवयुग की साक्षात् प्रतिमा हैं। गात कोमल पर चपलता कूट-कूटकर भरी हुई। झिझक या संकोच का कहीं नाम नहीं, मेक-अप में प्रवीण, बला की हाजिर-जवाब, पुरुष-मनोविज्ञान की अच्छी जानकार, आमोद-प्रमोद को जीवन तसमझने वाली, लुभाने और रिझाने की कला में निपुण। जहां आत्मा का स्थान है, वहां प्रदर्शन, जहां हृदय का स्थान है,वहां हाव-भाव, मनोद्गारों पर कठोर निग्रह, जिसमें इच्छा या अभिलाषा का लोप-सा हो गया हो।

आपने मिस्टर मेहता से हाथ मिलाते हुए कहा-सच कहती हूं, आप सूरत से ही फिलासफर मालूम होते हैं। इस नई रचना में तो आपने आत्मवादियों को उधेड़कर रख दिया। पढ़ते-पढ़ते कई बार मेरे जी में ऐसा आया कि आपसे लड़ जाऊं। फिलासफरों में सहृदयता क्यों गायब हो जाती है?

मेहता झेंप गए। बिनाब्याहे थे और नवयुग की रमणियों से पनाह मांगते थे। पुरुषों की मंडली में खूब चहकते थे, मगर ज्योंही कोई महिला आई और आपकी जबान बंद हुई, जैसे बुद्धि पर ताला लग जाता था। स्त्रियों से शिष्ट व्यवहार तक करने की सुधि न रहती थी।

मिस्टर खन्ना ने पूछा-फिलासफरों की सूरत में क्या खास बात होती है देवीजी?

मालती ने मेहता की ओर दया-भाव से देखकर कहा-मिस्टर मेहता, बुरा न मानें तो बतला दूं?

खन्ना मिस मालती के उपासकों में थे। जहां मिस मालती जायं, वहां खन्ना का पहुंचना लाजिम था उनके आसपास भौरे की तरह मंडराते रहते थे। हर समय उनकी यही इच्छा रहती थी कि मालती से अधिक से अधिक वही बोलें, उनकी निगाह अधिक से अधिक उन्हीं पर रहे।

खन्ना ने आंख मारकर कहा—फिलासफर किसी की बात का बुरा नहीं मानते। उनकी यही सिफत है।

'तो सुनिए, फिलासफर हमेशा मुर्दा-दिल होते हैं, जब देखिए, अपने विचारों में मगन बैठे हैं। आपकी तरफ ताकेंगे, मगर आपको देखेंगे नहीं, आप उनसे बातें किए जायं, कुछ सुनेंगे नहीं, जैसे शून्य में उड़ रहे हों।'

सब लोगों ने कहकहा मारा। मिस्टर मेहता जैसे जमीन में गड़ गए।

'आक्सफोर्ड में मेरे फिलासफी के प्रोफेसर हसबेंट थे....

खन्ना ने टोका-नाम तो निराला है।

'जी हां, और थे क्वारे....'

'मिस्टर मेहता भी तो क्वारे हैं....

'यह रोग सभी फिलासफरों को होता है।'