सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
60 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


तो गली-गली मिलेंगे, मैं सिद्धांत के पुजारियों में हूं।

'मैं इसे दंभ कहती हूं।'

'आपकी इच्छा।'

'धन की आपको परवा नहीं है?'

'सिद्धांतों का खून करके नहीं।'

'तो आपके पत्र में विदेशी वस्तुओं के विज्ञापन क्यों होते हैं? मैंने किसी भी दूसरे पत्र में इतने विदेशी विज्ञापन नहीं देखे। आप बनते तो हैं आदर्शवादी और सिद्धांतवादी, पर अपने फायदे के लिए देश का धन विदेश भेजते हुए आपको जरा भी खेद नहीं होता? आप किसी तर्क से इस नीति का समर्थन नहीं कर सकते।'

ओंकारनाथ के पास सचमुच कोई जवाब न था। उन्हें बगलें झांकते देखकर रायसाहब ने उनकी हिमायत की-तो आखिर आप क्या चाहती हैं? इधर से भी मारे जायं, उधर से भी मारे जायं। तो पत्र कैसे चले?

मिस मालती ने दया करना न सीखा था।

'पत्र नहीं चलता तो बंद कीजिए। अपना पत्र चलाने के लिए आपको विदेशी वस्तुओं के प्रचार का कोई अधिकार नहीं। अगर आप मजबूर हैं तो सिद्धांत का ढोंग छोड़िए। मैं तो सिद्धांतवादी पत्रों को देखकर जल उठती हूं। जी चाहता है, दियासलाई दिखा दूं। जो व्यक्ति कर्म और वचन में सामंजस्य नहीं रख सकता, वह और चाहे जो कुछ हो, सिद्धांतवादी नहीं है।'

मेहता खिल उठा। थोड़ी देर पहले उन्होंने खुद इसी विचार का प्रतिपादन किया था। उन्हें मालूम हुआ कि इस रमणी में विचार की शक्ति भी है, केवल तितली नहीं। संकोच जाता रहा।

'यही बात अभी मैं कह रहा था। विचार और व्यवहार में सामंजस्य का न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।'

मिस मालती प्रसन्नमुख से बोली-तो इस विषय में आप और मैं एक हैं, और मैं भी फिलासफर होने का दावा कर सकती हूं।

खन्ना की जीभ में खुजली हो रही थी। बोले-आपका एक-एक अंग फिलासफी में डूबा हुआ है।

मालती ने उनकी लगाम खींची-अच्छा, आपको भी फिलासफी में दखल है। मैं तो समझती थी, आप बहुत पहले अपनी फिलासफी को गंगा में डुबो बैठे। नहीं, आप इतने बैंकों और कपनियों के डाइरेक्टर न होते।

रायसाहब ने खन्ना को संभाला-तो क्या आप समझती हैं कि फिलासफरों को हमेशा फाकेमस्त रहना चाहिए?

'जी हां। फिलासफर अगर मोह पर विजय न पा सके, तो फिलासफर कैसा?'

'इस लिहाज से तो शायद मिस्टर मेहता भी फिलासफर न ठहरें।'

मेहता ने जैसे आस्तीन चढ़ाकर कहा-मैंने तो कभी यह दावा नहीं किया राय साहब ! मैं तो इतना ही जानता हूं कि जिन औजारों से लोहार काम करता है, उन्हीं औजारों से सोनार नहीं करता। क्या आप चाहते हैं, आम भी उसी दशा फलेफूलें जिससे बबूल या ताड़? मेरे