मालती ने श्रद्धा-भरे स्वर में कहा-आप तकल्लुफ समझते होंगे, मैं समझती हूं, मैं अपना सम्मान बढ़ा रही हूं, यों आप अपने को कुछ न समझें और आपको शोभा भी यही देता है, लेकिन यहां जितने सज्जन जमा हैं, सभी आपकी राष्ट्र और साहित्य-सेवा से भली-भांति परिचित हैं। आपने इस क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण काम किया है, अभी चाहे लोग उसका मूल्य न समझें, लेकिन वह समय बहुत दूर नहीं है—मैं तो कहती हूं वह समय आ गया है-जब हर एक नगर में आपके नाम की सड़कें बनेंगी, क्लब बनेंगे, टाऊनहालों में आपके चित्र लटकाए जांएगे। इस वक्त जो थोड़ी बहुत जागृति है, वह आप ही के महान् उद्योगों का प्रसाद है। आपको यह जानकर आनंद होगा कि देश में अब आपके ऐसे अनुयायी पैदा हो गए हैं, जो आपके देहात-सुधार आंदोलन में आपका हाथ बंटाने को उत्सुक हैं, और उन सज्जनों की बड़ी इच्छा है कि यह काम संगठित रूप से किया जाय और एक देहात सुधार-संध स्थापित किया जाय, जिसके आप सभापति हों।
ओंकारनाथ के जीवन में यह पहला अवसर था कि उन्हें चोटी के आदमियों में इतना सम्मान मिले। यों वह कभी-कभी आम जलसों में बोलते थे और कई सभाओं के मंत्री और उपमंत्री भी थे, लेकिन शिक्षित-समाज ने अब तक उनकी उपेक्षा ही की थी। उन लोगों में वह किसी तरह मिल न पाते थे, इसलिए आम जलसों में उनकी निष्क्रियता और स्वार्थांधता की शिकायत किया करते थे, और अपने पत्र में एक-एक को रौंदते थे। कलम तेज थी, वाणी कठोर, साफगोई की जगह उच्छृखलता कर बैठते थे, इसीलिए लोग उन्हें खाली होल समझते थे। उसी समाज में आज उनका इतना सम्मान। कहां हैं आज 'स्वराज' और 'स्वाधीन भारत' और 'हंटर' के संपादक, आकर देखें और अपना कलेजा ठंडा करें। आज अवश्य ही देवताओं की उन पर कृपादृष्टि है । सदुद्योग कभी निष्फल नहीं जाता, यह ऋषियों का वाक्य है। वह स्वयं अपनी नजरों में उठ गए। कृतज्ञता से पुलकित होकर बोले-देवीजी आप तो मुझे कांटों में घसीट रही हैं। मैंने तो जनता की जो कुछ भी सेवा की, अपना कर्तव्य समझकर की। मैं इस सम्मान को व्यक्ति का सम्मान नहीं, उस उद्देश्य का सम्मान समझ रहा हूं, जिसके लिए मैंने अपना जीवन अर्पित कर दिया है, लेकिन मेरा नम्रनिवेदन है कि प्रधान का पद किसी प्रभावशाली पुरुष को दिया जाय, मैं पदों में विश्वास नहीं रखता। मैं तो सेवक हूं और सेवा करना चाहता हूं।
मिस मालती इसे किसी तरह स्वीकार नहीं कर सकतीं। सभापति पंडितजी को बनना पड़ेगा। नगर में उसे ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति दूसरा नहीं दिखाई देता। जिसकी कलम में जादू है, जिसकी जबान में जादू है, जिसके व्यक्तित्व में जादू है, वह कैसे कहता है कि वह प्रभावशाली नहीं है। वह जमाना गया, जब धन और प्रभाव में मेल था। अब प्रतिभा और प्रभाव के मेल का युग है। संपादकजी को यह पद अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा। मंत्री मिस मालती होंगी। इस सभा के लिए एक हजार का चंदा भी हो गया है और अभी तो सारा शहर और प्रान्त पड़ा हुआ है। चार-पांच लाख मिल जाना मामूली बात है।
ओंकारनाथ पर कुछ नशा-सा चढ़ने लगा। उनके मन में जो एक प्रकार की फुरहरी-सी उठ रही थी, उसने गंभीर उत्तरदायित्व का रूप धारण कर लिया। बोले-मगर यह आप समझ लें, मिस मालती, कि यह बड़ी जिम्मेदारी का काम है और आपको अपना बहुत समय देना पड़ेगा। मैं अपनी तरफ से आपको विश्वास दिलाता हूं कि आप सभा-भवन में मुझे सबसे पहले