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पृष्ठ:गोदान.pdf/७१

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गोदान : 71
 


काम में लग हुए थे। धनुष-यज्ञ उनके लिए केवल तमाशा नहीं, भगवान् की लीला थी, अगर एक आदमी भी इधर आ जाता, तो सिपाहियों को खबर हो जाती और दम भर में खान का सारा खानपन निकल जाता, दाढ़ी के एक-एक बाल नुच जाते। कितना गुस्सेवर है। होते भी तो जल्लाद हैं। न मरने का गम, न जीने की खुशी

मिर्जा साहब से अंग्रेजी में बोले-अब क्या करना चाहिए?

मिर्जा साहब ने चकित नेत्रों से देखा-क्या बताऊं, कुछ अकल काम नहीं करती। मैं आज अपना पिस्तौल घर ही छोड़ आया, नहीं मजा चखा देता।

खन्ना रोना मुंह बनाकर बोले-कुछ रुपये देकर किसी तरह इस बला को टालिए।

रायसाहब ने मालती की ओर देखा-देवीजी, अब आपकी क्या सलाह है?

मालती का मुखमंडल तमतमा रहा था। बोलीं-होगा क्या, मेरी इतनी बेइज्जती हो रही है और आप लोग बैठे देख रहे हैं। बीस मर्दों के होते एक उजड्ड पठान मेरी इतनी दुर्गति कर रहा है और आप लोगों के खून में जरा भी गर्मी नहीं आती । आपको जान इतनी प्यारी है। क्यों एक आदमी बाहर जाकर शोर नहीं मचाता? क्यों आप लोग उस पर झपटकर उसके हाथ से बंदूक नहीं छीन लेते? बंदूक ही तो चलाएगा? चलाने दो। एक या दो की जान ही तो जायगी? जाने दो।

मगर देवीजी मर जाने को जितना आसान समझती थीं, और लोग न समझते थे। कोई आदमी बाहर निकलने की फिर हिम्मत करे और पठान गुस्से में आकर दस-पांच फैर कर दे, तो यहां सफाया हो जायगा। बहुत होगा, पुलिस उसे फांसी की सजा दे देगी। वह भी क्या ठीक। एक बड़े कबीले का सरदार है। उसे फांसी देते हुए सरकार भी सोच-विचार करेगी। ऊपर से दबाव पड़ेगा। राजनीति के सामने न्याय को कौन पूछता है? हमारे ऊपर उलटे मुकदमे दायर हो जायं और दंडकारी पुलिस बिठा दी जाय, तो आश्चर्य नहीं, कितने मजे से हंसी-मजाक हो रहा था। अब तक ड्रामा का आनंद उठाते होते। इस शैतान ने आकर एक नई विपत्ति खड़ी कर दी, और ऐसा जान पड़ता है, बिना दो-एक खून किए, मानेगा भी नहीं।

खन्ना ने मालती को फटकारा- देवीजी, आप तो हमें ऐसा लताड़ रही हैं, मानो अपनी प्राणरक्षा करना कोई पाप है। प्राण का मोह प्राणि-मात्र में होता है और हम लोगों में भी हो, तो कोई लज्जा की बात नही। आप हमारी जान इतनी सस्ती समझती हैं, यह देखकर मुझे खेद होता है। एक हजार का ही तो मुआमला है। आपके पास मुफ्त के एक हजार हैं, उसे देकर क्यों नहीं बिदा कर देतीं। आप खुद अपनी बेइज्जती करा रही हैं, इसमें हमारा क्या दोष?

रायसाहब ने गर्म होकर कहा-अगर इसने देवीजी को हाथ लगाया, तो चाहे मेरी लाश यहीं तड़पने लगे, मैं उससे भिड़ जाऊंगा। आखिर वह भी आदमी ही तो है। मिर्जा साहब ने संदेह से सिर हिलाकर कहा- रायसाहब, आप अभी तो इन सबों के मिजाज से वाकिफ नहीं हैं। यह फैर करना शुरू करेगा, तो फिर किसी को जिंदा न छोड़ेगा। इनका निशाना बेखता होता है।

मि॰ तंखा बेचारे आने वाले चुनाव की समस्या सुलझाने आए थे। दस-पांच हजार का वारा-न्यारा करके घर जाने का स्वप्न देख रहे थे। यहां जीवन ही संकट में पड़ गया। बोले-सबसे सरल उपाय वही है, जो अभी खन्नाजी ने बतलाया। एक हजार की ही बात और रुपये मौजूद