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72 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


हैं, तो आप लोग क्यों इतना सोच-विचार कर रहे हैं।

मिस मालती ने तंखा को तिरस्कार-भरी आंखों से देखा ।

'आप लोग इतने कायर हैं, यह मैं न समझती थी।'

'मैं भी यह न समझता था कि आपको रुपये इतने प्यारे हैं और वह भी मुफ्त के?'

'जब आप लोग मेरा अपमान देख सकते हैं, तो अपने घर की स्त्रियों का अपमान भी देख सकते होंगे?'

'तो आप भी पैसे के लिए अपने घर के पुरुषों को होम करने में संकोच न करेंगी।'

खान इतनी देर तक झल्लाया हुआ-सा इन लोगों की गिटपिट सुन रहा था। एकाएक गरजकर बोला-अम अब नई मानेगा। अम इतनी देर यहां खड़ा है, तुम लोग कोई जबाब नई देता (जेब से सीटी निकालकर) अम तुमको एक लमहा और देता है, अगर तुम रुपया नई देता तो अम सीटी बजायगा और अमारा पचीस जवान यहां आ जायगा। बस।

फिर आखों में प्रेम की ज्वाला भरकर उसने मिस मालती को देखा।

‘तुम अमारे साथ चलेगा दिलदार। अम तुम्हारे ऊपर फिदा हो जायगा। अपना जान तुम्हारे कदमों पर रख देगा। इतना आदमी तुम्हारा आशिक है, मगर कोई सच्चा आशिक नई है। सच्चा इश्क क्या है, अम दिखा देगा। तुम्हारा इशारा पाते ही अम अपने सीने में खंजर घुमा सकता है।'

मिर्जा ने घिघियाकर कहा-देवीजी, खुदा के लिए इस मूजी को रुपये दे दीजिए।

खन्ना ने हाथ जोड़कर याचना की-हमारे ऊपर दया करो मिस मालतो ।

रायसाहब तनकर बोले-हरगिज नहीं। आज जो कुछ होना है, हो जाने दीजिए। या तो हम खुद मर जायंगे, या इन जालिमों को हमेशा के लिए सबक दे देंगे।

तंखा ने रायसाहब को डांट बताई-शेर की मांद में घुसना कोई बहादुरी नहीं है। मैं इसे मूर्खता समझता हूं।

मगर मिस मालती के मनोभाव कुछ और ही थे। खान के लालसा-प्रदीप्त नेत्रों ने उन्हें आश्वस्त कर दिया था और अब इस कांड में उन्हें मनचलेपन का आनंद आ रहा था। उनका हृदय कुछ देर इन नरपुंगवों के बीच में रहकर उसके बर्बर प्रेम का आनंद उठाने के लिए ललचा रहा था। शिष्ट प्रेम की दुर्बलता और निर्जीवता का उन्हें अनुभव हो चुका था। आज अक्खड़, अनघड़ पठानों के उन्मत्त प्रेम के लिए उनका मन दौड़ रहा था, जैसे संगीत का आनंद उठाने के बाद कोई मस्त हाथियों की लड़ाई देखने के लिए दौड़े।

उन्होंने खान साहब के सामने जाकर निश्शंक भाव से कहा-तुम्हें रुपये नहीं मिलेंगे।

खान ने हाथ बढ़ाकर कहा-तो अम तुमको लूट ले जायगा।

'तुम इतने आदमियों के बीच से हमें नहीं ले जा सकते।'

'अम तुमको एक हजार आदमियों के बीच से ले जा सकता है।'

'तुमको जान से हाथ धोना पड़ेगा।'

'अम अपने माशूक के लिए अपने जिस्म का एक-एक बोटी नुचवा सकता है।'

उसने मालती का हाथ पकड़कर खींचा। उसी वक्त होरी ने कमरे में कदम रखा। वह राजा जनक का माली बना हुआ था और उसके अभिनय ने देहातियों को हंसाते-हंसाते लोटा दिया था। उसने सोचा, मालिक अभी तक क्यों नहीं आए? वह भी तो आकर देखें कि देहाती इस काम में कितने कुशल होते हैं। उनके यार-दोस्त भी देखें। कैसे मालिक को बुलाए? वह