अवसर खोज रहा था, और ज्योंही मुहलत मिली, दौड़ा हुआ यहां आया, मगर यहां का दृश्य देखकर भौंचक्का-सा खड़ा रह गया।सब लोग चुप्पी साधे थर-थर कांपते कातर नेत्रों से खान को देख रहे थे और खान मालती को अपनी तरफ खींच रहा था। उसकी सहज बुद्धि ने परिस्थिति का अनुमान कर लिया। उसी वक्त रायसाहब ने पुकारा होरी, दौड़कर जा और सिपाहियों को
बुला ला, जल्द दौड़।
होरी पीछे मुड़ा था कि खान ने उसके सामने बंदूक तानकर डांटा-कहां जाता है सुअर, अम गोली मार देगा।
होरी गंबावा था। लाल पगड़ी देखकर उसके प्राण निकल जाते थे, लेकिन मस्त सांड पर लाठी लेकर पिल पड़ता था। वह कायर न था, मारना और मरना दोनों ही जानता था, मगर पुलिस के हथकंडों के सामने उसकी एक न चलती थी। बंधे-बंधे कौन फिरे, रिश्वत के रुपये कहां से लाए, बाल-बच्चों को किस पर छोड़े, मगर जब मालिक ललकारते हों, तो फिर किसका डर? तब तो वह मौत के मुंह में भी कूद सकता है।
उसने झपटकर खान की कमर पकड़ी और ऐसा अडंगा मारा कि खान चारों खाने चित्त जमीन पर आ रहा और लगा पश्तो में गालियां देने। होरी उसकी छाती पर चढ़ बैठा और जोर से दाढ़ी पकड़कर खींची। दाढ़ी उसके हाथ में आ गई। खान ने तुरंत अपनी कुलह उतार फेंकी और जोर मारकर खड़ा हो गया। अरे। यह तो मिस्टर मेहता हैं। वाह।
लोगों ने चारों तरफ से मेहता को घेर लिया। कोई उनके गले लगता, कोई उनकी पीठ पर थपकियां देता था और मिस्टर मेहता के चेहरे पर न हंसी थी, न गर्व, चुपचाप खड़े थे, मानो कुछ हुआ ही नहीं।
मालती ने नकली रोष से कहा-आपने यह बहुरूपपन कहां सीखा? मेरा दिल अभी तक धड़-धड़ कर रहा है।
मेहता ने मुस्कराते हुए कहा-जरा इन भले आदमियों की जवांमर्दी की परीक्षा ले रहा था। जो गुस्ताखी हुई हो, उसे क्षमा कीजिएगा।
सात
सात
यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी, मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता देखने गए और आदि से अंत तक जमे रहे। उन्हें बड़ा मजा आ रहा था। बीच-बीच में तालियां बजाते थे और 'फिर कहो, फिर कहो' का आग्रह करके अभिनेताओं को प्रोत्साहन भी देते जाते थे। रायसाहब ने इस प्रहसन में एक मुकदमेबाज देहाती जमींदार का खाका उड़ाया था। कहने को तो प्रहसन था, मगर करुणा से भरा हुआ। नायक का बात-बात
में कानून की धाराओं का उल्लेख करना, पत्नी पर केवल इसलिए मुकदमा दायर कर देना कि उसने भोजन तैयार करने में जरा-सी देर कर दी, फिर वकीलों के नखरे और देहाती गवाहों की चालाकियां और झांसे, पहले गवाही के लिए चटपट तैयार हो जाना, मगर इजलास पर