पृष्ठ:गोदान.pdf/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गोदान : 85
 


दूसरी टोली रायसाहब और खन्ना की थी। रायसाहब तो अपने उसी रेशमी कुरते और रेशमी चादर में थे। मगर खन्ना ने शिकारी सूट डाला था, जो शायद आज ही के लिए बनवाया गया था, क्योंकि खन्ना को असामियों के शिकार से इतनी फुर्सत कहां थी कि जानवरों का शिकार करते। खन्ना ठिगने, इकहरे, रूपवान आदमी थे। गेहुँआ रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, मुंह पर चेचक के दाग, बातचीत में बड़े कुशल। कुछ देर चलने के बाद खन्ना ने मिस्टर मेहता का जिक्र छेड़ दिया, जो कल से ही उनके मस्तिष्क में राहु की भांति समाए हुए थे।

बोले-यह मेहता भी कुछ अजीब आदमी है। मुझे तो कुछ बना हुआ मालूम होता है।

रायसाहब मेहता की इज्जत करते थे और उन्हें सच्चा और निष्कपट आदमी समझते थे, पर खन्ना से लेन-देन का व्यवहार था, कुछ स्वभाव से शांतिप्रिय भी थे, विरोध न कर सके। बोले-मैं तो उन्हें केवल मनोरंजन की वस्तु समझता हूं। कभी उनसे बहस नहीं करता और करना भी चाहूं तो उतनी विद्या कहां से लाऊं? जिसने जीवन के क्षेत्र में कभी कदम ही नहीं रखा, वह अगर जीवन के विषय में कोई नया सिद्धांत अलापता है, तो मुझे उस पर हंसी आती है। मजे से एक हजार माहवार फटकारते हैं, न जोरू न जांता, न कोई चिंता न बाधा, वह दर्शन न बघारें तो कौन बघारे? आप निर्द्वंद्व रहकर जीवन को संपूर्ण बनाने का स्वप्न देखते हैं। ऐसे आदमी से क्या बहस की जाय।

'मैंने सुना चरित्र का अच्छा नहीं है।'

'बेफिक्री में चरित्र अच्छा रह ही कैसे सकता है। समाज में रहो और समाज के कर्तव्यों और मर्यादाओं का पालन करो, तब पता चले।

'मालती न जाने क्या देखकर उन पर लट्टू हुई जाती है।'

'मैं समझता हूं, वह केवल तुम्हें जला रही है।'

'मुझे वह क्या जलाएंगीं, बेचारी। मैं उन्हें खिलौने से ज्यादा नहीं समझता।'

'यह तो न कहो मिस्टर खन्ना, मिस मालती पर जान तो देते हो तुम।'

'यों तो मैं आपको भी यह इल्जाम दे सकता हूं।'

'मैं सचमुच खिलौना समझता हूं। आप उन्हें प्रतिमा बनाए हुए हैं।'

खन्ना ने जोर से कहकहा मारा, हालांकि हंसी की कोई बात न थी।

'अगर एक लोटा जल चढ़ा देने से वरदान मिल जाय, तो क्या बुरा है।'

अबकी रायसाहब ने जोर से कहकहा मारा, जिसका कोई प्रयोजन न था।

'तब आपने उस देवी को समझा ही नहीं। आप जितनी ही उसकी पूजा करेंगे, उतना ही वह आपसे दूर भागेंगी। जितना ही दूर भागिएगा, उतना ही आपकी ओर दौड़ेंगी।'

'तब तो उन्हें आपकी ओर दौड़ना चाहिए था।'

'मेरी ओर। मैं उस रसिक-समाज से बिल्कुल बाहर हूं मिस्टर खन्ना, सच कहता हूं। मुझमें जितनी बुद्धि, जितना बल है, वह इस इलाके के प्रबंध में ही खर्च हो जाता है। घर के जितने प्राणी हैं, सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त, कोई उपासना में, कोई विषय-वासना में। कोऊ काहू में मगन, कोऊ काहू में मगन। और इन सब अजगरों को भक्ष्य देना मेरा काम है, कर्त्तव्य है। मेरे बहुत से ताल्लुकेदार भाई भोग-विलास करते हैं, यह मैं जानता हूं। मगर वह