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पृष्ठ:गोदान.pdf/८७

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गोदान : 87
 


खाली गया ।

'एक हत्या से बचे'

'हां कहिए, क्या कहने जा रहे थे।'

'आपके इलाके में ऊख होती है?'

'बड़ी कसरत से।'

'तो फिर क्यों न हमारे शुगर मिल में शामिल हो जाइए? हिस्से धड़ाधड़ बिक रहे हैं। आप ज्यादा नहीं, एक हजार हिस्से खरीद लें?'

'गजब किया, मैं इतने रुपये कहां से लाऊंगा?'

'इतने नामी इलाकेदार और आपको रुपयों की कमी। कुल पचास हजार ही तो होते हैं। उनमें भी अभी 25 फीसदी ही देना है।'

'नहीं भाई साहब, मेरे पास इस वक्त बिल्कुल रुपये नहीं हैं।

'रुपये जितने चाहें, मुझसे लीजिए। बैंक आपका है। हां, अभी आपने अपनी जिंदगी इंश्योर्ड न कराई होगी। मेरी कंपनी में एक अच्छी-सी पालिसी लीजिए। सौ-दो सौ रुपये तो आप बड़ी आसानी से हर महीने दे सकते हैं और इकट्ठी रकम मिल जायगी-चालीस-पचास-हजार। लड़कों के लिए इससे अच्छा प्रबंध आप नहीं कर सकते। हमारी नियमावली देखिए। हम पूर्ण सहकारिता के सिद्धांत पर काम करते हैं। दफ्तर और कर्मचारियों के खर्च के सिवा नफे की एक पाई भी किसी की जेब में नहीं जाती। आपको आश्चर्य होगा कि इस नीति से कंपनी चल कैसे रही हैं। और मेरी सलाह से थोड़ा-सा स्पेकुलेशन का काम भी शुरू कर दीजिए। यह जो सैकड़ों करोड़पति बने हुए हैं, सब इसी स्पेकुलेशन से बने हैं। रुई, शक्कर, गेहूं, रबर किसी जिंस का सट्टा कीजिए। मिनटों में लाखों का वारा-न्यारा होता है। काम जरा अटपटा है। बहुत से लोग गच्चा खा जाते हैं, लेकिन वही, जो अनाड़ी हैं। आप जैसे अनुभवी, सुशिक्षित और दूरंदेश लोगों के लिए इससे ज्यादा नफे का काम ही नहीं बाजार का चढ़ाव-उतार कोई आकस्मिक घटना नहीं। इसका भी विज्ञान है। एक बार उसे गौर से देख लीजिए फिर क्या मजाल कि धोखा हो जाय।'

रायसाहब कंपनियों पर अविश्वास करते थे, दो-एक बार इसका उन्हें कड़वा अनुभव हो भी चुका था, लेकिन मिस्टर खन्ना को उन्होंने अपनी आंखों के सामने बढ़ते देखा था और उनकी कार्यक्षमता के कायल हो गए थे। अभी दस साल पहले जो व्यक्ति बैंक में क्लर्क था, वह केवल न अपने अध्यवसाय, पुरुषार्थ और प्रतिभा से शहर में पुजता है। उसकी सलाहों की उपेक्षा न की जा सकती थी। इस विषय में अगर खन्ना उनके पथ-प्रदर्शक हो जायं, तो उन्हें बहुत कुछ कामयाबी हो सकती है। ऐसा अवसर क्यों छोड़ा जाय? तरह-तरह के प्रश्न करते रहे।

सहसा एक देहाती एक बड़ी-सी टोकरी में कुछ जड़ें, कुछ पत्तियां, कुछ फल लिए, जाता नजर आया । खन्ना ने पूछा-अरे, क्या बेचता है?

देहाती सकपका गया, डरा, कहीं बेगार में न पकड़ जाय। बोला-कुछ तो नहीं मालिक। यही घास-पात है?

'क्या करेगा इनको?'