सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गोदान : 95
 


'आप अगर इसे सौ कदम ले चलें, तो मैं वादा करता हूं, आप मेरे सामने जो तजवीज रखेंगे, उसे मंजूर कर लूंगा।'

'मैं इन चकमों में नहीं आता।'

'मैं चकमा नहीं दे रहा हूं, वल्लाह। आप जिस हलके से कहेंगे, खड़ा हो जाऊंगा। जब हुक्म देंगे, बैठ जाऊंगा। जिस कंपनी का डाइरेक्टर, मेंबर, मुनीम, कनवेसर, जो कुछ कहिएगा, बन जाऊंगा। बस, सौ कदम ले चलिए। मेरी तो ऐसे ही दोस्तों से निभती है, जो मौका पड़ने पर सब कुछ कर सकते हों।'

तंखा का मन चुलबुला उठा। मिर्जा अपने कौल के पक्के हैं। इसमें कोई संदेह न था। हिरन ऐसा क्या बहुत भारी होगा। आखिर मिर्जा इतनी दूर ले ही आए। बहुत ज्यादा थके तो नहीं जान पड़ते, अगर इंकार करते हैं, तो सुनहरा अवसर हाथ से जाता है। आखिर ऐसा क्या कोई पहाड़ है। बहुत होगा, चार-पांच पंसेरी होगा। दो-चार दिन गर्दन ही तो दुखेगी। जेब में रुपये हों, तो थोड़ी-सी बीमारी सुख की वस्तु है।

'सौ कदम की रही।'

'हां, सौ कदम। मैं गिनता चलूंगा।'

'देखिए, निकल न जाइएगा।'

'निकल जाने वाले पर लानत भेजता हूं।

तंखा ने जूते का फीता फिर से बांधा, कोट उतारकर लकड़हारे को दिया, पतलून ऊपर चढ़ाया, रूमाल से मुंह पोंछा और इस तरह हिरन को देखा, मानो ओखली में सिर देने जा रहे हैं। फिर हिरन को उठाकर गर्दन पर रखने की चेष्टा की। दो-तीन बार जोर लगाने पर लाश गर्दन पर तो आ गई, पर गर्दन न उठ सकी। कमर झुक गई, हांफ उठे और लाश को जमीन पर पटकने वाले थे कि मिर्जा ने उन्हें सहारा देकर आगे बढ़ाया।

तंखा ने एक डग इस तरह उठाया, जैसे दलदल में पांव रख रहे हों। मिर्जा ने बढ़ावा दिया—शाबाश! मेरे शेर, वाह वाह।

तंखा ने एक डग और रखा। मालूम हुआ, गर्दन टूटी जाती है।

'मार लिया मैदान! शबारा! जीते रहो पट्ठे।'

तंखा दो डग और बढ़े। आंखें निकली पड़ती थीं।

'बस, एक बार और जोर मारो दोस्त! सौ कदम की शर्त गलत। पचास कदम की ही रही।'

वकील साहब का बुरा हाल था। वह बेजान हिरन शेर की तरह उनको दबोचे हुए, उनका हृदय-रक्त चूस रहा था। सारी शक्तियां जवाब दे चुकी थीं। केवल लोभ, किसी लोहे की धरन की तरह छत को संभाले हुए था। एक से पच्चीस हजार तक की गोटी थी। मगर अंत में वह शहतीर भी जवाब दे गई। लोभी की कमर भी टूट गई। आंखों के सामने अंधेरा छा गया। सिर में चक्कर आया और वह शिकार गर्दन पर लिए पथरी जमीन पर गिर पड़े।

मिर्जा ने तुरंत उन्हें उठाया और अपने रूमाल से हवा करते हुए उनकी पीठ ठोंकी। 'जोर तो यार तुमने खूब मारा, लेकिन तकदीर के खोटे हो।"

तंखा ने हांफते हुए लंबी सांस खींचकर कहा—आपने तो आज मेरी जान ही ले ली थी। दो मन से कम न होगा ससुर।