सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गोदान : 99
 

आ गया।

बोले—अच्छा भई, तुम्हारे पास कुछ नहीं है, अब राजी हुए। जितने रुपये चाहो, ले जाओ, लेकिन तुम्हारे भले के लिए कहते हैं, कुछ गहने-गाठे हों, तो गिरो रखकर रुपये ले लो। इसटाम लिखोगे, तो सूद बढ़ेगा और झमेले में पड़ जाओगे!

होरी ने कसम खाई कि घर में गहने के नाम कच्चा सूत भी नहीं है। धनिया के हाथों में कड़े हैं, वह भी गिलट के।

झिंगुरीसिंह ने सहानुभूति का रंग मुंह पर पोतकर कहा—तो एक बात करो, यह नई गाय जो लाए हो, इसे हमारे हाथ बेच दो। सूद इसटाम सब झगड़ों से बच जाओ, चार आदमी जो दाम कहें, वह हमसे ले लो। हम जानते हैं, तुम उसे अपने शौक से लाए हो और बेचना नहीं चाहते, लेकिन यह संकट तो टालना ही पड़ेगा।

होरी पहले तो इस प्रस्ताव पर हंसा, उस पर शांत मन से विचार भी न करना चाहता था, लेकिन ठाकुर ने ऊंच—नीच सुझाया, महाजनी के हथकंडों का ऐसा भीषण रूप दिखाया कि उसके मन में भी यह बात बैठ गई। ठाकुर ठीक ही तो कहते हैं, जब हाथ में रुपये आ जायं, गाय ले लेना। तीस रुपये का कागद लिखने पर कहीं पच्चीस रुपये मिलेंगे और तीन-चार साल तक न दिए गए, तो पूरे सौ हो जायंगे। पहले का अनुभव यही बता रहा था कि कर्ज वह मेहमान है, जो एक बार आकर जाने का नाम नहीं लेता।

बोला—मैं घर जाकर सबसे सलाह कर लूं, तो बताऊं।

'सलाह नहीं करना है, उनसे कह देना है कि रुपये उधार लेने में अपनी बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं।'

'मैं समझ रहा हूं ठाकुर, अभी आ के जवाब देता हूं।'

लेकिन घर आकर उसने ज्योंही वह प्रस्ताव किया कि कुहराम मच गया। धनिया तो कम चिल्लाई, दोनों लड़कियों ने तो दुनिया सिर पर उठा ली। नहीं देते अपनी गाय, रुपये जहां से चाहे लाओ। सोना ने तो यहां तक कह डाला, इससे तो कहीं अच्छा हैं, मुझे बेच डालो। गाय कुछ बेसी ही मिल जायगा। होरी असमंजस में पड़ गया।

दोनों लड़कियां सचमुच गाय पर जान देती थीं। रूपा तो उसके गले से लिपट जाती थी और बिना उसे खिलाए कौर मुंह में न डालती थी। गाय कितने प्यार से उसका हाथ चाटती थी, कितनी स्नेहभरी आंखों से उसे देखती थी। उसका बछड़ा कितना सुंदर होगा। अभी से उसका नामकरण हो गया था—मटरू! वह उसे अपने साथ लेकर सोएगी। इस गाय के पीछे दोनों बहनों में कई बार लड़ाइयां हो चुकी थीं। सोना कहती, मुझे ज्यादा चाहती है, रूपा कहती, मुझे। इसका निर्णय अभी तक न हो सका था। और दोनों दावे कायम थे।

मगर होरी ने आगा-पीछा सुझाकर आखिर धनिया को किसी तरह राजी कर लिया। एक मित्र से गाय उधार लेकर बेच देना भी बहुत ही वैसी बात है, लेकिन बिपत में तो आदमी का धरम तक चला जाता है, यह कौन-बड़ी बात है। ऐसा न हो तो लोग बिपत से इतना डरें क्यों? गोबर ने भी विशेष आपत्ति न की। वह आजकल दूसरी ही धुन में मस्त था। यह तै किया कि जब दोनों लड़कियां रात को सो जायं, तो गाय झिंगुरीसिंह के पास पहुंचा दी जाय।

दिन किसी तरह कट गया। सांझ हुई। दोनों लड़कियां आठ बजते-बजते खा-पीकर सो