पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/११०

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पद [ राग रामग्री] चारि पहर आलंगनर निंद्रा, संसार जाइ विषिया वाही ऊभी बांह गोरषनाथ पुकार, मूल म हारौ म्हारा भाई । टेक । श्रमावसी पड़िवा मन घट सूनां, सूनां ते मंगलवारे । भणता गुंणता ब्रह्मण वेद बिचारै, दसमी दोष निवारै पड़वा' 3 आनन्दा१४ बीजसि५ चंदा, पांचौं लेवा१६ पाली। आठमि ७ चौदसि व्रत१८ एकादसी, अंगि न लाऊ१९ वाली ॥२॥ १२ ॥१॥ रात के चारों पहर आलिंगन (स्त्री का) और निद्रा में बिता कर संसार विषयों में बहा जा रहा है। गोरखनाथ खदी बाहों के साथ (चेतावनी देने की मुद्रा करके ) पुकारता है कि हे मेरे भाई मूल (शुक्र) को मत हारो। मम्मा, नहीं, मत। अमावस और पड़िवा को अनाध्यायादि रहता है। योगी के लिए शून्य १. (क) च्यारि । २. (घ) आलिंगण । ३. (क) न्यंद्रा । ४, (घ) जाय । ५. (घ) बाई । ६. (क) जमे हाौँ । ७. (क) 'मूल' के पहले 'तुम्हें।। ८. (घ) न । ६. (क) माह्या (१) १०. मावस । ११. (घ) पढ़ता गुंणता पंडित भूला । १२. (क) दसवीं दसौं दोष हारें; (घ) निवारं । १३. (घ) पड़िवा । १४. (घ) आनंदा । १५. बीजम् । १६. (क) पांचमि ल्यो. तुम्हें । १७. (घ) अा। १८. (घ) बरत । १९. (घ) म लावै। १४