पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१११

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८६ [गोरख-बानी संमी सांमै सोडवा म. जागिवा, तृसंधि देणां पहरा । वीनि पहर पर दोइ घट जाइबा, तिहां छै काल चा हेरा।३। यांमां अंगे सोइवा जमचा भोगवा', संगे न पीवणां पांणीं । इमत्त अजरांवर होइ.२ मछिंद्र, बोल्यौ गोरष ३ बांणीं१४|४|१|| में मन और शरीर को लगाना ही अमावस और परिवा मनाना, श्रम शून्य होना है। वहीं मंगलवार का व्रत भी है। दशमी को कहने गुणने वाला प्राक्षाय तो वेद का विचार करते हैं किन्तु योगी के लिए दशमी मनाना यम- निपमादि द्वारा शरीर के दोषों को दूर करना है। प्रतिपदा का अनाध्याय इस्यादि श्रम से निरस्त होना योगी के लिए प्रमानन्द में मग्न होना है। द्वितीय को चन्द्र दर्शन पंच ज्ञानेंद्रियों को उनके शब्द रसादि विषयों से रदा करना है। अष्टमी, चतुर्दशी, एकादशी श्रादि के नियम प्रतादि स्त्री (पाला) से अपना शरीर स्पशन कराना है। देखने में पाहर से (संमी, समक्ष ) तो सांझ को सो जानो किंत भीतर से ( मंझे, मध्य में) जागते रहो। इस प्रकार त्रिकाल की सन्यावस्था में पहरा देना चाहिए । नियामा (रानि) के तीन पहरों में से बीत जाने पर अर्थात् तीसरे में काल रवि (घात) लगाये रहता है । अर्थात प्राममुहूर्त में भी अचेत होकर सोते रहने वाले को काल प्रस लेता है। इसी से योगी मासमुहूर्त में जागता रहता है । देवल नाथ का वचन है- पहले पहर सय कोई जागे, दूजे पहरै भोगी। तीजे पहर तस्करि जागे, चीये पहरे जोगी । सो के नंग में अर्थात् पाम सोना यम का भोग करना या भोग होना है। टम (जीके) साय तो पानी भी न पीना चाहिए । हे मस्येन्द्र मी प्रबार अमर हो पायो । गोरपनाप एमी मामी बोलता है। १. (८) गंगी। २. (५) मायया । २, (घ) देवा । ४. (घ) दीय। ५. (प) मिरमिला। इ.सदा कान का। ७ () चाय अंगि सोयया । ८.(या । ६. (१) गंनि । १०. (५) पीया । ११. (1) वनी। १२. (-) । १:. () होयया । १४. (4) गोरप यल्या । 24 (cir simg