पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१२५

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[गोरख-बानी गद्गा तीर मतीरा' अवधू, फिरि फिरि बगिजा कीजै । अरव वहन्ता 3 उर) लीजै, रवि सस मेला कीजै ॥ ३ ॥ चंद सुर दोऊ गगन" विलुधा, मईला घोर अंधारं । पंच वाहक जब न्यंद्रा पौड्या', प्रगट्या पौलि पगार ॥४॥ काया कंधा, मन जोगोटा, सत गुर मुझ लपाया | भणन गोरपनाथ न्डा'२ रापो, नगरी चार मलाया 3 ॥ ५ ॥ १० ॥ (मुष्म तत्व से धारा टूट कर स्यूज का निर्माण हुआ है ।) स्वाधिष्ठान मौर विगुन गावि र उसी धारा में यने हुए हैं। इसी धारा में भयया इन्हीं पकों में अपचारी पयवा शामा का निवास है। नौ सौ नदियाँ ( संपूर्ण नादी जाल) पनिहारिन टोर पुष्टि क प्राणधारा से हंस (जीय, धारमा) को सोंचती है निसामा रूपी येव पुपित हो जाती है और इला (चंद्र नासी) के फूल नज (शीतलता यायक शान) टरपज हो जाना है जिसका फिर फिर वाणिज्य फरना प्रादि । नीचे पहने पालो (अमन की प्रयया पयन को) धारा को उपर लताइपे,गंज में पदाइए । सौर पन्द्र नादी और सूर्य नादी का मेन कीजिए। म में इन दोनों (चन्द्र नादी और सूयं नारी ) के लोप हो जाने से ( पुग्ना के प्राधान्य से) (यातायों के लिए) घोर अंधकार हो गया। का मानक (नायक, पापड, पदानि) प्रधान पंनिय रान बाई जानकर साकार और मिदार प्रहरी गये प्रांत अंदर जाने का मार्ग fan, प्राध्यामिक गरने सामागं गुज गया।) या frma, fe, feer शिशुभारल्या ताप हो गये। नागो गाणार पगार::मा: में का फाटक । दागर मेला (करना।) और कापा उपपदी। या रहस्य मम गुम गापा । infan बाप को सुरक्षित ii, नारी में गोर एप क पनमा में)॥ १० ॥ 2.1734611) III 7. (*) olin.(*)*5*17?! :.15, 6-47,

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