पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१४८

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गोरख-धानी] अरधैं उरधैं लाइलै कूची, थिर होवै मन तहां थाकीले पवनां । दसवां द्वार चीन्दिले, छुटै आवा गवनां । २। भणत गोरषनाथ मछिंद्र ना पूता, जाति हमारी तेली। पीड़ी गोटा कादि लीया; पवन पलि दीयां ठेली ३ ॥२१॥ अवधू गागर कंधे पाणीहारी२, गवरी कंधै नवरा, घरका गुसाई कौतिग चाहै, काहे न बंधौ जौरा ॥ टेक ॥ लँण कहै अलूणां बाबू, घृत कहै मैं रूपा । अनल कहै मैं प्यासा मुवा, अंन कहै मैं भूखा।१। अधः और ऊर्च (निःश्वास और प्रश्वास) दोनों को ताली लगाकर (केवल कुम्भक के द्वारा) मन स्थिर होता है और पवन थक जाता है। दशम द्वार में परमात्मा का परिचय प्राप्त करने से आवागमन छूट जाता है । मबन्दर का पुत्र- शिष्य गोरखनाथ कहता है कि हम तेली हैं | गोटा ( पिसे तिनों का चिरा पेर कर के ( तेल अर्थात् श्रात्म तच्च ) हमने निकाल लिया है और पवन रूप खली को फेंक दिया है ॥ २४ ॥ घर का स्वामी (प्रारमा) कौतुक (तमाशा) देखना चाहता है, इसलिए यम- राज (ौरा) बांधा क्यों नहीं जायगा । अर्थात् आत्मा यमराज को बांध कर वैसे ही नचाने लगा है जैसे बन्दर को सदारी नचाता है। १. (घ) में यह पद इस प्रकार है- पवनां रे तू जाइगो कौणै बाटा, मन राजा बैठो त्रिवेणी कै घाटा । उनमिनि भौंरा बोलै सलिअल बाटा, पीवै अमीरस खुले हैं कपाटा ॥ अरधैं उरधैं ताली लागी, थकि गया पवनां । सति संजम रहणां तौ आबा न गवनां ॥ तिलां मधे तेल कान्या काष्ट टि आगा। दून्यू मिलि दीपक जोया, तबै सूझण लागा ॥ बदत गोरषनाथ जाति मेरी तेली, तेल गोटा पीड़ि लीया पलि दीवी मेली। २. (घ) गगरी कप पाणीहारी। ३. (घ) गौरी कांधै गौरा । ४. (५) को । ५. (घ) बधौ जौंरा । ६. (घ) ल्हुषा । ७. (घ) अनील । ८. (घ) मूवा । ६. (क) अनाज।