पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१७१

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9 . १३६ [गोरख-वानी आपण ही स्यंघ बाध आपण ही गाइ, आपण ही मारीला, आपण ही पाइ।२। आपण ही टाटी फड़िका, आपण ही बंध, आपण ही मृतग५, आपण ही कंध । ३। न्हाइ कौर तीरथ न पूजिबे कौं देव, भणंत गोरषनाथ अलष अभेव।४।॥४१॥ मेरा गुरु तीनि छंद गावै, ना जाणौँ गुर कहां गैला, मुझ नींदडी न आवै ॥टेका। कुम्हरा के घरि हांडी आछ, अहीरा के घर सांडी। बमना के घरि रांडी आछे, रांडी सांडी हांडी ॥१॥ the देता । जिससे युद्ध करता हूँ वही तो श्रारम स्वरूप राम है। (यह प्रारमा हो) स्वयं कच्छप ( कछुआ) और मच्छ ( मछली.) है और स्वयं ही ( उनको बंधन में डालने वाला जाल (अर्थात् स्वयं जीव है और स्वयं उसे बंधन में भालने वाला माया-पाश ) स्वयं धीवर ( मछमार ) है और स्वयं काल स्वयं सिंह और म्यान ( माया) है, और स्वयं गाय (जीव) जिसे वे असने जाते हैं । अपने ही को मारता है और स्वयं खाता है । स्वयं ही.बांस के ठहर का दौंचा है और स्वयं ही उस पर बांधा जाने वाला फरका (फलक) या छाजन और स्वयं ही उनको घाँधने वाला बंधन । स्वयं मारने वाला है और स्वयं ही शरीर है। (जो मारा जाता है। ) (आत्मा के बाहर ) न कोई तीर्थ है जहाँ के पवित्रता के लिये नहाया जाय और न कोई देवता है जिसकी पूजा की जाय । गोरखनाय कहते हैं कि ( यह भारमा) अलक्ष्य है जो भीखों से दिखायी नहीं देता, अमेव है, जिसका किसी को भेद अथवा रहस्य नहीं ज्ञात है। कंध-स्कंध, कंधा, यहाँ पर शरीर ॥ ४१॥ मेरा गुरु तीन छन्द गाता है। (एक ही बात को तीन प्रकार से कहता १. (घ) सिंघ । २. (घ) गाय पाय । ३. (घ) मौर । ४. (घ) ताटी। ५. (क) भारीला । ६. (घ) न्हायवे • । ७. (घ) कू देवा "अमेवा ।