. गोरख-बानी] १६५ चीरा लगा तीनिस साठी। नौसै पाई नाटिक गांठी। नदी अठारह गंडिक बहई । मगर मच्छ जल पैरत रहई ॥६॥ अहूठ कोटि बनासपती माला । सहज कमल दल पदमनी नाला । भेदि षट चक्र बसै नांगणीं । कोटणी सत मोहि फरणीं ॥७॥ गुप्स हैं (प्रकट दस द्वार तो ब्रह्मरंध्र-सहित नवरंध्र है। तीन गुप्त द्वारों का वर्णन गोपनीय समझ कर योगियों ने अपनी बाणियों में नहीं किया है।) उसमें नौ नादियां और यहत्तर कोठे है। नादियां दहत्तर हजार मानी जाती हैं उनमें से बहत्तर श्रेष्ट मानी जाती हैं और उनमें से भी इस प्रधान । 'गोरक्ष शतक', 'गोरक्ष पद्धति १,२६ । ये बहत्तर कोठे यहत्तर नादियां ही हैं। यहां इस नादियों में से सुपुग्ना को छोड़कर शेष नौ कही हैं । सुपुरना ही में सब मिलती है। नौ नालियों के नाम हैं-इदा, पिगला, गांधारी, हस्तिजिह्वा, पूपा, यशस्विनी, अलम्वुपा, कुहू और शंखिनी । इस घर में अर्थात् किले में पचास (अर्थात् षट्चक्र जिनमें सब मिलाकर ५० दल माने जाते हैं ), पचीस ( २५ प्रकृति देखिए भागे 'गोरख गणेश गोष्ठी' ) और पांच तत्व चोर हैं। अब तक पट्चक का बेधन नहीं होता, पचीस प्रकृतियां वश में नहीं होती, पञ्च तत्वों से ऊपर नहीं उठा जाता तब तक अध्यात्म-योग में सिद्धि नहीं हो सकती ॥२॥ शरीर की ३६० हड्डियाँ पत्थर हैं जिनसे गढ़ बना है। शरीर में प्रधान नव नादियाँ खाई हैं । नदी वहई -अठारह गंडा नदी अर्थात् १८४४=७२ नदियों । अर्थात् नापियाँ । शरीर में ७२ करोड नादियां मानी जाती है । जैसे चौरासी लाख योनि को कभी कमी केवल ८४ कह देते हैं उसी प्रकार यहाँ ७१ । मगर मछ-मकर मत्स्य, भौतिकता का प्रतीक अहंकार ॥६॥ असंख्य नालियों का अन्त रोम कूपों में हुआ है। उनसे उठने वाले रोम वनरपति माला है। इन्हीं नादियों का एक दूसरे से प्रथित हो जाना ऊपर कोउनी कहा गया है। इनमें से प्रधान प्राथियों रूपक के पासरे नालदल युक्त कमल भी कहो गयी हैं । यही पट् चक्र हैं, कुंडलिनी शक्ति इनसे परे यसती है। (उसे जागरित करने के लिए उनका इसीलिए भेदन आवश्यक है ।) वह कोदनी (माया, शक्ति, कुंडलिनी) अपने मोह रूप फणों से यहाँ सत्य की रक्षा करती है, सत्य के पास किसी को पहुँचने नहीं देती ॥७॥ २४ कदा