पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२१२

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गोरख-बानी] नारी सारी कींगुरी। तीन्यू सत गुर पर हरी। आरंम घट परचै निसपत्ती । नरवै बोध कथंत श्री गोरष जती ॥१४॥ इति श्री गोरधनाथ विरंचते, नरवै बोध ग्रन्थ, पठते गुणते कर्थते, पापे न लिप्यंते, पुन्ये न हरते, ॐ नमो सिवाई नमो सिवाई गुरु मछींद्रनाथ पादुका नमसतते। इति श्री नरवै बोध प्रन्थ जोग सान सपूरण समापत ।