पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२२७

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१८८ [गोरख-यानी गोरख-स्वामी कोण परि चन्द कोण परि सूर कोण घरि काल यजावै तूर कोण घरि पंच तत्व समि रहै । सतगुर होइ सुघूझचां कहै ॥१५॥ महिंद्र-अवध मन परिचंद पवन घरि सूर । सुनि घरि काल बजावैतू।। न्यांन घरि पंच तत्व समिरहै । सतगुर होइ सुयूमयां कहै ॥१६॥ गोरप-स्वामी कोण अमावस कोण स पड़िया ।। फहां का महारस फहां ले चढ़िवा । कौण अस्यांने मन उनमन रहै। सतगुर होइ सुझयां कहै ।।१७।। मछिंद्र~अवधू रवि अमावस चन्द मु परिवा। अरघ का महारस उरध ले चदिपा॥ गगन अस्थांने मन सनमन रहे। ऐसा विचार मछिद्र कहै ॥१॥ गोरप स्वामी फु-सपद का कोण प्रास । सु-सयद' का कर्थ मास ॥ द्वादस अंगुल याई कौण मुपि रहै। सतगुर होइ सु मयां कहै ।।१६ महिंद्र-~प्रवधू फुसघद का सुसयद'प्रास । सुसबद का निरंतर यास ॥ द्वादस घंगुल पाई गुरमुपि रहे । ऐसा पिचार महिंद्र कहे ।।२० गोरप-स्वामी श्रादि का कारण गुरू । घरती का कोण भरतार ।। ग्यांन का कोण अस्थांन । सुनि का कयं द्वार ॥ २१ ॥ महिंद्र-वधू पादि का अनादि गुरू । धरती का अम्बर भरतार | ग्यांन फा अस्यांन घेतनि । सुनि का परचा द्वार ।। २२।। गोरप-ग्यांनी काँग पर माया मोह टूटे। कोण पर समिघर टै। कोण पर नागे यध । कोण पर थिरके फंध ॥ २३ ॥ माट-अयधू मन पापै माया मोह टूट पवन पासास परि फूट।। ग्यांन पाप लागै पन्ध । गुरु पर अजरामर कन्ध ।।२।। १. पंचा। २. (5) तत। १. (१) । ४.(फ.) खन्य; () मनि । ५. () में नहीं । ६. (क) 'नो। .. (4) उनमनि । ८. (८) से। ९.(८) असम मुगम। १.. (4) पूपमा। ११. (१) | ११. (५) माग । १२. (१) भरपन पेनि । १३. (५) सूट। १४. (६) भरार ।