पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२३५

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१६४ [गोरख-बानी मछिद्र-अवधू' मन मुषि बाला लागै समाधि । पवन मुषि बाला छुटै उपाधि । सुरति मुषि बाला तुरियर बन्धः । गुर मुषि बाला अजरावर कन्ध ॥६४|| गारष-स्वामी कौंण सोच कौण जागे । कौंण दहादसि जाइ । कहां 3 उठत कहां होइ होठ कण्ठ तालुका बजाइ ॥६५॥ मछिंद्र-अवधू मन सोवै पवन जागै, कलपना दह दिसि जाइ५ । नाभी थें उठत पवनां, आगै होइ होठ कठ तालुका बजाइ ॥६६ नोरष-स्वामी कहां थे करै मन गुण धणां । कहां थें करै पवन" आवागवनां । कौंण मुषि चंदा नीझर २मरै १ कोण मुषि काल निद्रा करै ॥६७ मछिन्द्र-अवधू इदा थे मन करै गुण घणां। नाभी थें करै पवन श्रावागवनां । आप मुषि ४ चंदा नीझर २ झ २। मन मुषि काल'५ निन्द्रा'६ करै ॥ ६ ॥ गोरष-स्वामी कोण तेजा जोति पलटै। कौंण सुनि थे बाचा फुरै। कौण सुनि थै त्रिभुवन "सार । कोण सुंनि थें उतरिया पार ॥६६॥ मछिन्द्र-अवधू उप तेज थेंजोति पलेट । अभय सुनि थे याचा फुरै । परम सुनि त्रिभुवन सार अतीत सुनि उत्तरिया पार ॥७०॥ १. (१) 'अवधू' नहीं । २. (घ) तुरीया । ३. (क) वधि । ४. (५) अजरांवर । ५. (घ) दिहिदिस ध्यावे ..पजावे । ६. (घ) नै । ७. (4) ऊठन्त । ८. (घ) वाल । ९. (घ) में 'श्रागै होइ' नहीं है। (क) करे १०. (घ) तालिका ११. (घ) पवन करे । १२. (घ) नीझर । १३. (घ) करै । १४. (घ) आपि मुपी । १५. (क) प्रांगी। १६. न्यंद्रा । १७. (५) सनि । १८. (घ) त्रिभवन । १९. (घ) कतरिना। २०. श्री। २१. (क), (घ) सुनि । २२, (घ) त्रिमवन । २३. (4) पारि।