पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२५९

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२१६ [गोरख-बानी तूयी मै तिरलोक समाणा, तिरवेणी रिव चैदा। मौ हो कोई ब्रह्म गियांनी; अनहद नाद अभंगा ॥३५॥ आवा गवण भरम का मारग, पुरपां पंथ वताया। सबद अतीत अनाहद बोले, अंतरि गीत समाया ॥३६॥ विमल पंथ वोजल ज्यू चमकै, घरदरती धन गाजै ता रहनी मैं जोगी का घर, अनहद बाना वाजै ॥३७॥ जा पद मिंदर धजा फरहरे, मढी संवारे चेला। कोटि कन्ना जहाँ अनहद बांगी, गावै पुरिप अकेला ॥३८॥ " अर्थात् कुडलिनी शक्ति को प्रसार में स्थिर करता है, यह स्थिर हो कर अमृत पान करता है। जो घड़े को सीधा रखता है यह उसका संधारण कर देता है, मस्त नहीं पी सकता । जो बाहरी भांखों से नहीं देखता (भंधै लोचन) उसको ज्ञान नेत्रों से जगत् की सारी वास्तविकता प्रकट हो जाती है और जिमको पाहरी श्रॉन्में सम्पूर्ण है, पहिष्टि है, उसको कहीं भी भाज्यारिमक प्रकाय नहीं दिखायी देता ॥ ३४ ॥ एथी या शरीर है, इसी में प्रलोक्य समाया हुआ है, इसी पिंड में यह मांट है। निवणी ( विन्टी ) सूर्य और चन्द्र सय इसी में है । इसी में प्रसन्न रूप से अनाहत नाद भी हो रहा है। कोई प्रमशानी इसे समझे ।। ३१ ।। मायागमन भ्रम का मार्ग है । असली पंथ वो उन पुरुषों (सिदी) का पगापा हुमाया, जिन्होंने पहुंच के यादरवाल (अतीत ) अनाहत नाद को जागरित हिया है, और अंगीन हो गये है ॥ ३६|| पह विमट मार्ग दिवशीही नाद मना है, धनघटा की तरह परतता । टम पर पनने से ज्यानि का शंन होता है, और अनादतनाव मुनायी देगा है। हमी रहनो" में योगी का निवास ॥२०॥ जीप पर फारात्री पारी मन्दिर (चर्या राम-प्रामार अगमभिर (ER,परकीया! अपनी गली मना) सप नियामदारकोटिकवानों, मदिरा मनाया नारा ano COST c!!