पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२६४

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बवाना २६ 3 गोरख-बानी] वारि गंगा पारि गंगा, मंझी जोगोटा ध्यान ।। गंग जमन लै मेर' चढ़ाई, वहां प्रगट्या ब्रह्म गियांन ॥१८॥ सींगी सेली और षड़ासण२, अनंत सीधां लीन्हा जाइ । द्वादस डीबी परध का मेला, अलेष मंढ़ी ताहां गगन समाइ३ ॥१९॥ सोना रूपा प्रही कू दीन्हा । आदी पत्र ले ईश्वर कूदीन्हा॥ जोगारभ तहां सीध समाइ । आदि धरम सुरग उतपना आइ ॥२०॥ बारा बरस का मुवा समांण", श्री गोरषनाथ जगाया। चौसठ जोगणि भ्यध्या पुरै, अनंत सीधां आदि पत्र पाया ॥२१॥ आदी पत्र आदी उत्यंम अनादि धरम संकर कू पेस । निगुरा कू गड़बड़ बोलीये सुगरा कू उपदेस ॥२२॥ येता येक पंच मात्रा का ऊचार अनंत सीधां तहां सुण्या विचार ॥ मच्छन्द्र प्रसादै जठी गोरष कहै । ते अवधू पंच भू भात्मा लहै ॥२३॥ जे जोगी जाणे पंच मात्रा का भेव । सो आपै करता आपै देव ॥ ये पंच मात्रा जोगी बुझे । ताकू त्रिभुवन सू सकल देवत्ता पूजै ॥२४॥ इति श्री पंच मात्रा पठंत गुणंत कथंते करते पापेन लिपंते पुन्ये न हरन्ते आवागवण विव्रजते अमरलोकी सगछते ॥ वो उ' नमसिवाय । उन्मोस्यवाय । गुरु मछंद्रनाथ पादुका नमस्ते । इति श्री गोरषनाथ जी की पांच मात्रा ग्रंथ जोग सास संपूरण समाता। १. (च) लोर । २. (च) कडासण । ३. (च) कामेसा माइ । ४. (च) सरवंग । इस श्लोक में (च) में तीसरे और चौथे चरण के स्थान बदले है, और (घ) में दूसरे और चौथे के । ५. (च) सूणा । ६. (घ) भिछया । ७. (घ) सुनिया । ८. (च) “पंचमा” में संभवतः नकल की गलती है । ९. (घ) 'ताक् सकल देवता त्रिभवन सूझै'। ३१