पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२७१

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२२८ [गोरख-बानी गो०-कौणस्य श्रावै कौणसि जाय, जो बोले सो कहाँ समाइ। जो गंमि होइ स कहिये भेव, गोरष कहै सुनो दतदेव ॥७॥ द०-अवधू न कोइ भावे न कोइ जाई, कांसा नाद मधि समाई। येकै सुत्र प्रोया हार, सांभलि हो गोरष कहूँ विचार ॥८॥ गो०-स्वामी कौंणस्य माता कौंणस्य पिता,कौंणस्य गुरू उपदेस स्थिता । कौंणस्य आसण करौ विश्रांम, कौंण घर सो दाषौ ठाम ॥९॥ द०-अवधू षमा मांता सत पिता, ग्यांन गुरू परचाया स्थिता। अलेष आसण तहां विश्रांम, सांभलि गोरष दापू ठाम ॥१०॥ गो-स्वामी कौंण मुकत कौण दुष सहै, कौंण सि बिणसै कौंण अजरावर रहै। जो गंमि होइ सु कहिये भेव, गोरष कहे सुणौ दत देव ॥११॥ द०-अवधू ब्रह्म मुकता प्रकीरति दुष सहै, प्रकीरति बिनसै ब्रह्म अजरावर रहै गुह्य ग्यांन कथिलै अपार, सांभलि गोरष कहाँ बिचार ॥१२॥ गो०-स्वामी कौंणसि सुषिम कौंण अस्थूल,कौंणस्य डालां कौंणस्य मूल । जो गंमि होइ सु कहिये भेव, गोरष कहै सुणौ दतदेव ॥१३॥ द०-अवधू ब्रह्म सुषिम तत सथूल, पवनस्य डाला मनस्य मूल । गुरहि ग्यांन कथिले अपार, सांभलि गोरष कहौ विचार ॥१४ गो०-स्वामी कौंणस्य गुर कौंण सि चेला, किहि विधि होय अनंत सिधाँ सौ मेला। ब्रह्म कमल का कहिये भेव, गोरष कहै सुणौ तददेव ॥१।। द०-अवधू परमात्मा सि गुर आतम चेला, सहज सुनि होइगा अनंत सिधांसू मेला । ब्रह्म कमल उरध मुष पिला, साँभलि गोरप उनमन कला ।।१६।। गो०-स्वामी कोणस्य कला, किस विधि पूठै त्रिकुटी ताला ।