पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२७४

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गोरख-बानी] २२९ नाद बिंद का कहियै भेव, गोरप कहै सुणौ दतदेव ॥१७ द०-अवधू उनमनि ध्यान पवन बिधि काया, नाभ दम पूरै त्रिकुटी ताला। दस द्वारि व्यंद का बास, साँभलि गोरप नाद का प्रकास ॥१८॥ गो-स्वामी कौणसि कंटक कौंण उचाट, किहि विधि पूलै ब्रह्म कपाट। अगम पंथ का कहियै भेव, गोरप कहै सुणौ दतदेव ॥१६॥ द-अवधू कंटक सोई जिहि अतिवंत क्रोध, उचाट सोई आत्मा बिरोध। गुरु गमि पूलै ब्रह्म कपाट, सांभलि गोरष ऊजू बाट ॥२०॥ गोस्वामी कौनसि दया कौंन सि धन, कौंण सि चूडण कौंन सि तिरण | कौंन सि ग्यांन करम का भेव, गोरष कहैं सुणौ दतदेव ॥२१॥ द०-अवधू बूडण सोइ ज कंटक पुधि, तिरण सोई जु निरमल बुधि । ध्यान सोइ जो दया धरम, ग्यांन सोई विवरजित करम ॥२२॥ गोल-स्वामी कौंण स्य बंधा कौंण स्य मुकता, कौंण सि जोगी कौंण सि जुगता।। देव कला का कहियै भेव, गोरप कहै सुणौ दत देव ॥२३॥ द०-बध्या सोई जु करमहि वध, मुकता सोई रहै निरदंद। जोगी सोई जुगति मन रहै, गोरप पूछ दत्तात्य कहै ॥२४|| गो-स्वामी कौंण स्य जुगता कौंण स्य जोग, कौण स्य काया व्यापै रोग। इनका हम से कहियै भेव गोरप कहै सुणौ दतदेव ।।२।। , . 3 जू-वह जो 21-ORT १. (घ) गुहिज । (घ) पूरै।