पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२७८

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[क] (३) महादेव गोरष गुष्टि ईश्वरोवाच ॐ अविगत उत्तपते इच्छा । इच्छा उतपते आकास । आकास उतपते वाय । वाय उत्तपते तेज । तेज उतपते तोयं । तोयं उत. पते मही। . अविगत ते इच्छा । इच्छा ते आकास । आकास नाम, स्याम वरण दस द्वार वासा, दाहिणे पैसार, वाम श्रवण निकास, नाद सुनै सो आहार, दंभ वड़ाई व्यौहार । राग दोष हर्ष शोक मोहादिक ये पांच प्रकृति आकास की बोलिये। इन आकास मारग जीव अनुसरै तो सेत- रज पानि भोगवै। आकास से वायु नाम, नील वरण, नाभि वासा, इला पैसार, पिंगुला निसार, गंध वासना आहार, क्रोध व्यवहार । गावण, धावण, बलगन, संकोचन, पसारण, ये पांच प्रकृति वायु की वोलिये। इन वायु मारग जीव अनुसरै तौ अंडरज पानि भोगवै। वायु ते तेज नाम, रक्त वरण, त्रिकुटी वासा, दाहिणे नेत्र पैसार, बामें निसार, दृष्टि दे सो आहार, मोह व्यौहार । क्षुधा, त्रिपा, निद्रा, आलस, क्रांति ये पांच प्रकृति तेज की बोलिये। इन तेज मारग जीव अनुसरै तौ रज (१) पानि भोगवै । तेज ते श्राप नाम, स्वेत वरण, ललाट वासा, जिभ्या पैसार, इन्द्री निकास, स्त्री आहार, काम व्यौहार । लाल, मूत्र, प्रस्वेद, रुधिर, मज्जा ये पांच प्रकृति आपको बोलिये । इन आप मारग जीव अनुसरै तौ उदबीरज पानि भोगवै। महादेव गोरप गुष्टि केवल () के आधार पर ।