पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२७९

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२३४ [गोरख-बानी आप ते पृथ्वी नाम, पीत वरण, कलेजे वासा, मुष पैसार, मूल- द्वार निकास, पावे पीवे सो अहार, लोभ लालचं व्यौहार । अस्थि, मास, त्वचा, नाड़ी, रोम ये पांच प्रकृति पृथ्वी की बोलिये । इन पृथ्वी मारग जीव अनुसरै तौ पिंडरज पानि भोगवै। इवि पंच प्रकृति, पंच घर, दस द्वार, पंच अहार, पंच व्यौहार, पंच वरण, पंच पानि चौरासी लाष जीव जोनि भ्रमते। तथा ये पंच कर्मानि बोलिये सुनो गोरष अवधूत । ईश्वरो कयंति। महा ग्यांन कर्म पटल प्रथमो अध्याय। ईश्वरोवाच पंच तत्वभेद कथितं । पृथ्वी ग्रासंति तोया। तोया प्रासंति तेज । तेज प्रासंति वायु । वायु ग्रासंति आकास । आकास प्रासंति इच्छा । इच्छा प्रासंति अविगत । अविगत रहंत, श्रावते न जाते । जैसा है तैसा हो रहते । असंघ मनि नाम । अवरण वरण । हिरदै वासा। भाव घर, अदृष्टि द्वार, सहज पैसार, समाधि निकास, अमी प्रहार, अर्थव्यौहार इन मन मारगजीव अनुसरै तौ साजोज्य मुकति भोग। असंघ बुद्धि नाम । अवरण वरण, निर्मूल वासा, विचार घर, अनाहद द्वार, निहशब्द पैसार, अनभै निकास, रस अहार, अगह च्यौहार इन बुद्धि मार्ग अनुसरै तौ सामीप मुकति भोगवै । सहज सून्य चिंता 'नाम अवरण वरण त्रिकुटी वासा विवेक घर, अजपा द्वार, निहकाम पैसार, संतोष निसार, कमरंद अहार, अगम व्यौहार । इन चित मारग जीव अनुसरै तौ स्वरूप मुक्त भोगवै परम ध्यानच अहंकार नाम, अवरण वरण, विषमी वासा, विवेक लय घर, नृवासीक द्वार, अगम पैसार, अगोचर निसार, अजर अहार, अगाध व्यौहार इन अहंकार मारग चित्त अनुसरै तौ सालोक मुक्ति मोग।