पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२८०

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गोरख-बानी] २३५ प्रांण अंतहकरण नाम, अवरण वरण, अस्थिति वासा, धीर घर अकिल द्वार, ग्यांन पैसार, विग्यांन निसार, अमरा अहार, अबंध व्यो- हार । इन अंतहकरण मारग जीव अनुसरै तौ महा मुक्ति (भोगवै) आत्मा परमात्मा भवति । जोगेस्वर जीव एकं भवंति। परम सून्य भावे स्थिति । पारब्रह्म भवे लीनं । सत्यं सत्यं च वदाम्यहं । तत्त्वग्यांन श्री शंभूनाथ अकथ कथितं सुनो हो गोरष अवधूत परम जोग संप्राप्रितं जोगी। ईश्वरो कथंत महाग्यांन इति ग्यान इन्द्रादि योलिये । इति ग्यांन पटल द्वितीयो अध्याय । इति गोरष महादेव सम्वाद