पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२८५

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२४० [गोरख-यानी वा दीपक के डाल न मूल । ता दीपक कै कली न फूल ।। ना दीपक के रंग न रूप । वा दीपक के छांह न धूप ॥ ता दीपक के सबद न स्वादं। ता दीपक के विद्या न बादं॥ ता दीपक के मोह न माया । सो दीपक सुनै सून समाया। इति दया बोध संपूर्ण। १. () नादं । २. (घ) मुने मुनि (मुंने मुनि)।