पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/३०३

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२५६ [गोरख-बानी षोड्सु सरकंवल । सिव थांन सहंस पंषुड़ी। थान जीव सीव घरि । अनहद सबद । पछिम ऊचे भांण ग्यांन । डीवी मनसा । पाताल गुण परै। चंद सूर ताता सीता । धरथा का गुण भस्म कीया। नादी विदी नाद बिंद सींगी। आकास आत्मा । थेगली काया। छसै सहंस स्वास । बहतरि नाड़ी। सूई सुरति । बांवन बीर मन । यड़ा पिगुला सुषमनी। आसमान ब्रह्मद्वार ॥ १८ ॥ बदंत गोरखनाथ परसिलं केदारं । केदार ब्रह्मद्वार। पांणी रामरस । टेक । चा परवत । राग दोष । ता आ» बाट । यला पिंगुला किलिमिलि पचन.! कांवरू काया । पूरस गिरि दसवी द्वार ।। १९॥ बांधौ बछरिया पीवौ पीवी पीरं। बछरी यंद्री। पीर यंम्रतरस । अजरांवर मरै न । टेक । आकास ऊंची दसा । धेनि आत्मां । त्रिभवन त्रिगुणी काया । राजा जीव पूछ परकीरति नाहीं । बारह बछरा सो बारह कला सूरज की सो बांधौ । सोलह कला चंद्रमा की सो यंम्रत सरवै। धेनि आत्मां। रैणिं चेतन आरबल । अचर ब्रह्म । कचरा माया । विषै रस । पाच ग्वालिया पांच पंद्री । आत्मांधेनि । अमृत रस । गगन ब्रह्म ॥ २०॥ बोल्या गोरष धर जोई। धर हिरदा। तत आत्मां ॥ टेक ॥ त्रियाली त्रिगुणी माया । अासरा मन यंद्री । मन मैं तन बसिकीया। मब मैं कुभ काया बसी। कलस कंवल । पैर पोज । पुरषै पुरष निपाया। जिहि उटि ताता सीला न अगै । तो ग्यान न उदै होय । तहां पासण करै। मन माहिला हीय साध । सोधि लीणां तत ग्यांनी। बिमल नृमल ॥ २१ ॥ मनसा देवी न्यौपार बांधौ । मनसा व्यौपार ब्रह्म सूं कीयौ । पवन करि पुरुष। मन बिनसतो