पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/३०९

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२६२ गोरखबानी तृसालवां=तृषालु पचाना। स १३ तांण=खिंचाव । प १९ जरगां (विशेषण)=जिसने अपने ताली 'ताला ।प २३ योगानुभव को पचा लिया है, स्थिर ताली=ध्यान, समाधि स १० कर लिया है। स २५२ 'तुलाइ रजाई । प६ जरै जीर्ण होता है, पचता है, स्थिर तेजंग: 'गरम । स ५६ होता है । स १९ । प२० जलहरजलधर, बादल । प १८ थंभ-स्तंभ, खंभा । ग्या ४५ जटिया =ठगा गया,धोखे में पाया। थंभन स्तंभन । न ५ स २२ •थांन-मांनपद या तीर्थ का मान । जांण-ज्ञान । प १८ स८२ जिद =जीवन, प्राण तत्व । स १५६ थांभी=स्तंभित की, रोकी । ग्या २६ जुगः '=जग । स ७३ थाभां=खंभा । प६ जोतिबा जोतना, जोडना । सिद थारी तुम्हारी । स २२८ पृ० १६० थीति-स्थिति । स८० जौरा,जौराः =यमराज । प २५ थीर, थीरं स्थिर, गंभीर । मगो झकोल्या=डाला, मिनाया। प २८ १२१, स २८ झषै कहता है (बक-मक में का मक) थोथी छुछा, खोखला । स ११९ स १६४ दगध -मलाना । स १७ झवकै झपको में, सोते-सोते । प ५७ दरसण=मुद्रा, जिसे नाथपंथी कानों झलझलंति-छलछलाता, छलकता में पहनते हैं ! स २७२ है। स २८ दहूँ, (दुहुं)=दोनों । स ५७ मालरिमांक । प ६२ 'दा), दाषौ =देखता हूँ, देखते हो । डाकर दुकरना, गर्जन करना । प ४८ डिंभ =दंम | स १६० दिसंतर=देशांतर, देशाटन । स २६ डीबी=शक्ति, कुलिनी । प १९ दुकाला=कुसमय । स २० डमरु। ग्या४ 'दुदन हि =माया में भी । ग्या २० डुकरिया=स्री, माया । प ४७ 'दुलीचा =प्रासन | ग्या ४५ ढंकी: =ढकना, आच्छादन । स४ दुहेला-ली= दुर्लभ, कठिन | स ६१ ढवका उपाय । प १४ दूझे दूसरे । प २० तकवीर तदवीर योग युकि । दूधाधारी=केवल दुध पर रहने वाला, स ११८ रो पृ० २०४ पयाहारी । स ३९ तलबत्न =परा, लबालब भरा हुअा। देवलदेवबनाथ । स८७ स १३६ देवलदेवालय । स ९७ , गोद १०,६ . डेरू