पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/३१०

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शब्द-संग्रह २६३ . > " . . . द्वादश (द्वादिस) अंगुल प्राणवायु । या दमाव के । स १६५ स ११६, १५५ निरूता-दिना श्राइट किये । स ३८ धणियाणो-किसान । प १७ निवाणा-निन्न, नीचे तलवाना। न७ घर अधर-पृथ्वी और आकाश, निसपती = जिसे योग की पिपत्ति मणिपूर और ब्रह्मरंध्र कुंडलिनी और अवस्था प्राप्त हो गयी है। स १३९ अलक्ष्य जोति, माया और ब्रह्म । स ९८ निहचलै-निश्चल । स ८ धरती-मूलाधार अथवा मणिपूर निहार-निकास, निस्सरण । गोग पा३ पृ० २२४ Vधाइ आधार जल रहा है । प४७ नेतनासारंध्र अथवा नेत्र। स १०६ धूतारा=धृतं । स ४३ न्यंदैनिंदा करता है। स १२६ धूतैः -उगता है । स ४३ न्हासैः -चलता है, दौदता । स २०९ धोतरा-धतूरा । स २४१ पगारं-प्राकार, परकोटा । प १० धोरी - धवल सुपेद । १३१ पछिम-सुपुम्णा । स ६६ नरवे-नृपति, राजा । स १५ पछेवड़ो पक्षपट । १६ नवेलड़ी-नवीन । प १७ पडरवा-भैंस की बदसी जो अभी नवेरडो-नवीन । प३१ न्यायी नहीं। प ४७ नहिंतर=नहीं तो। स २७१ पणी -गाय भैंस का एक यार का का।११६ दयाना । प २० नांवगर-नौकाधर, मांझी । ग्या १९ पदया नीर-शुक्र (नोर) को बचा नाभनभिचक्र, मणिपुर । प १६ नाटारंभ-नाट्य का प्रारंभ, दिखावा । पयाल-पाताल, मयिपर मूलाधार। स १९९% न ६ नालि-तोप, बंदूक । स ९४ परचा, परचैपरिचय, साक्षात्कार । निपना, निपजै-निष्पच हुत्रा, पैदा स १५, २१ हुश्रा । ग्या ४३, स ३७ परछया-परीक्षा | बल निपाया, निया-उत्पन्न किया, को। परतपिः प्रत्यक्ष स८८ प४८, २७ परमले परिमल, सुंगधि । रो, पृ० निवारी छोड़ देना चाहिए, लोड़ा २०४ निवारण किया। स८३ परणांव्या-परिणय करा दिया।प१६ निरंवरि-अलग, बाहर । स १०० परन्यां-परिणय किया । प६० निति=यांगानंद की अवस्था । मगो परमधैि प्रयोधन करे । मगो १२६ १०८ 'पलंकापरलंका, बंका के मी परे । निरदावे-बिना किसी के अधिकार स६४ नां . कर। प्रा०६ ,