पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/४८

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, गोरख-बानी] २५ हिन्दू १ ध्यावै २ देहुरा मुसलमान मसीत । जोगी ध्यावैः परमपद जहाँ ५ देहुरा न मसीत ॥ ६८ ।। हिंदू आफैं राम कौं मुसलमान षुदाइ । जोगी आर्षे अलप कौं, तहाँ राम अछैन पुदाइ ॥ ६९ ॥ प्यंडे १० होइ१ तौ १२ मरै न कोई, ब्रह्म'डे१ 3 देषे सब लोई १४ प्यंडब्रॉड ५निरंतर १६बास१७,भरणंत गोरष मछयद्रका दास||७०॥ बैठा अवधू लोह की पूंटी चलता२°अवधू पवन की मूठी सोवता२१ अवधू जीवता२२मूवा, वोलता अवधू प्यंजरै उसूवा ॥ ६८ ॥ वाला फल, ब्रह्मानुभूति ) खाने को मिलता है। गोरख ने अपने चंचल मन को इसी प्रकार स्थिर किया ॥ ६७ ॥ हिन्दू देवालय में ध्यान करते हैं, मुसलमान मसजिद में किंतु योगी परमपद का ध्यान करते हैं, जहाँ न देवालय है न मसजिद ॥ ८॥ हिंदू कहते हैं (आखें, आख्यान करते हैं कि हमारा परमेश्वर) राम है, मुसलमान कहते हैं खुदा है। किन्तु योगी जिस अलक्ष्य का श्राख्यान करते हैं, वहाँ न राम है, न खुदा । ( अलक्ष्य ब्रह्म राम और खुदा दोनों से परे है)॥६६॥ यदि शरीर में परमात्मा होता तो कोई मरता ही नहीं। यदि ब्रह्मांड में होता तो हर कोई उसे देखता। जैसे ब्रह्मांड की और चीजें दिखाई देती हैं वैसे ही वह भी दिखाई देता । मत्स्येन्द्र का सेवक (शिप्य ) गोरख कहता है कि वह पिंड और ब्रह्मांड दोनों से परे है ॥ ७० ॥ अवधूत योगी जब (प्रासन मारे ) बैठा रहता है तो वह लोहे की खूटी के १. (ग), (घ) हींदू । २.(क)ध्यां; (घ) ध्यावै । ३.(ग) मसीति । ४. (क) प्रम पद । ५. (क),(ख) तहा । ६. (ग) अषै (घ) अपैं;(क) में भी दूसरे 'श्रा के स्थान पर 'अषै; (घ) अर्षे । ७. (ग), (घ) कू। ८. (ग), (घ) पाछै ६. (ग) षुदाई; (घ) षुदाय । १०. (ग) प्यंडे, (घ) पिंडे । ११. (घ) होय । १२. (ग) तो। १३. (ग), (घ) ब्रह्मडे । इसके अागे (ग) में 'होइ तो और (घ) में 'होय तौ' अधिक है। १४. (ग) (घ) कोई । १५. (ग) प्यंडै ब्रह्म'डे, (घ) पिंडे ब्रह्मांडे । १६. (घ) निरंतरि । १७.(ग) वासा "दासं । (घ) वासादासा । १८ (ग) मछंद्र; (घ) मछिंद्र । . १६. (ख) पुटी "मुठी। (क) पूंटी...मूठी। २०. (ग) चालतां; (घ) चालता । २१. (ग) सोवतां २२. (ख) जीवता न । (ख) में इन दोनों चरणों का क्रम उलट गया है । २३. (ग) पिंचरे, (घ) पिंजरै।